उत्तर-जर्मनी का एकीकरण-वियना कांग्रेस द्वारा जर्मनी के 39 राज्यों का एक शिथिल जर्मन संघ बनाया गया। एक जर्मन राष्ट्र सभा की स्थापना की गई जिसका अध्यक्ष आस्ट्रिया के सम्राट को बनाया गया। इससे जर्मन लोगों में घोर असन्तोष व्याप्त था। जर्मनी के राष्ट्रवादियों ने 1815 से जर्मनी के एकीकरण के प्रयास शुरू कर दिए जिनका वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया जा सकता है- (1) जॉलवेराइन की स्थापना- 1834 ई. में प्रशा की पहल पर जॉलवेराइन नामक एक शुल्क संघ की स्थापना की गई जिसमें अधिकांश जर्मन राज्य सम्मिलित हो गए। इस संघ ने शुल्क अवरोधों को समाप्त कर दिया तथा मुद्राओं की संख्या केवल दो कर दी जो उससे पहले तीस से ऊपर थी। इसके अलावा रेलवे के जाल ने गतिशीलता बढ़ाई और आर्थिक हितों को राष्ट्रीय एकीकरण का सहायक बनाया। इस प्रकार जॉलवेराइन से जर्मन राज्यों में राष्ट्रीयता की भावना का विकास हुआ। इसने भविष्य में प्रशा के नेतृत्व में जर्मनी के राजनीतिक एकीकरण का मार्ग प्रशस्त कर दिया। (2) फ्रेंकफर्ट की संसद-सम्पूर्ण जर्मनी के लिए एक नवीन संविधान बनाने के लिए 18 मई, 1848 को फ्रेंकफर्ट संसद के 831 निर्वाचित सदस्यों की एक बैठक हुई । उन्होंने एक जर्मन राष्ट्र के लिए एक संविधान का प्रारूप तैयार किया। इस राष्ट्र की अध्यक्षता एक ऐसे राजा को सौंपी गई जिसे संसद के अधीन रहना था। जब प्रतिनिधियों ने प्रशा के राजा फ्रेडरीक विल्हेम चतुर्थ को ताज पहनाने की कोशिश की तो प्रशा के सम्राट् द्वारा जर्मन राज्यों का राजमुकुट धारण करना स्वीकार न करने के कारण वेधानिक तरीकों से जर्मनी के एकीकरण के प्रयासों पर पानी फिर गया। (3) बिस्मार्क का योगदान-सन् 1862 में प्रशा के सम्राट् विलियम प्रथम तथा उसके प्रधानमंत्री ऑंटो वॉन विस्मार्क ने जर्मनी के एकीकरण के आन्दोलन का नेतृत्व सम्भाल लिया। बिस्मार्क ने प्रशा की सेना तथा नौकरशाही की सहायता ली। उसने लौह और रक्त की नीति अपनाते हुए सात वर्ष की अवधि में 1864 में डेनमार्क को, 1866 में आस्ट्रिया को तथा 1870 में फ्रांस को युद्धों में पराजित कर दिया और जर्मनी के एकीकरण की प्रक्रिया पूरी की । 18 जनवरी, 1871 को बिस्मार्क ने वर्साय के शीश महल में प्रशा के सम्राट विलियम प्रथम को नवीन जर्मन साम्राज्य का सम्राट् घोषित किया। 

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