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अंटार्कटिक सरकम्पोलर करंट

अंटार्कटिक सरकम्पोलर करंट

 

वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि उच्च कार्बन उत्सर्जन परिदृश्य की वजह से 2050 तक अंटार्कटिक सरकम्पोलर करंट लगभग 20 प्रतिशत तक धीमा हो सकता है।

अंटार्कटिक सरकम्पोलर करंट क्या है?

 

  • यह पृथ्वी पर सबसे तेजी से प्रवाहित होने वाली और पवन-चालित सबसे बड़ी महासागरीय धारा है। यह अंटार्कटिका के चारों ओर दक्षिणावर्त (घड़ी की सुई के घूमने की दिशा में) घूमती है। यह प्रबल पछुआ पवनों (Westerly winds) द्वारा संचालित होती है। 
  • यह एकमात्र महासागरीय धारा है, जो पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करती है। यह अटलांटिक, प्रशांत और हिंद महासागरों के जलों को जोड़ती है। 
  • अंटार्कटिक सरकम्पोलर करंट का महत्त्व:
    • यह एक शीत धारा (Cold Current) है। यह अवरोधक के रूप में कार्य करती हुई गर्म जल को अंटार्कटिका तक पहुंचने से रोकती है।
    • यह महासागर द्वारा वायुमंडल से ऊष्मा और कार्बन डाइऑक्साइड के अवशोषण में बड़ी भूमिका निभाती है।
    • यह अन्य महाद्वीपों की बुल केल्प, झींगा, मोलस्क जैसी आक्रामक प्रजातियों को अंटार्कटिका तक पहुंचने से रोकती है।

अंटार्कटिक सरकम्पोलर करंट की गति कम होने की वजहें

  • महासागर की लवणता में परिवर्तन: ग्लोबल वार्मिंग की वजह से अंटार्कटिका के आसपास हिमखंड (ice shelves) तेजी से पिघल रहे हैं। इससे अंटार्कटिक बॉटम वाटर (AABW) कमजोर हो रहा है।
    • अंटार्कटिक बॉटम वाटर वास्तव में सिंकिंग प्रोसेस है। इसका अर्थ है कि अधिक ठंडा होने की वजह से इस जल का घनत्व बढ़ जाता है और महासागर में अधिक गहराई में पहुंच जाता है। वहां से यह उत्तर की ओर प्रवाहित होता हुआ दक्षिणी, हिंद, प्रशांत और अटलांटिक महासागरों के सबसे गहरे भागों में पहुंच जाता है। 
    • इस तरह यह विश्व में महासागर के जलों के परिसंचरण का एक महत्वपूर्ण घटक है और अंटार्कटिक सरकम्पोलर करंट के परिसंचरण से भी जुड़ा हुआ है।
  • पवन की दिशा और वेग में परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन दक्षिणी गोलार्ध में पछुआ पवनों की दिशा व वेग को बदल सकता है।
  • पॉजिटिव फीडबैक लूप: समुद्री बर्फ में कमी से महासागर और अधिक सूर्य प्रकाश अवशोषित करने लगेगा। इससे महासागरीय जल और अधिक गर्म होने लगेगा और ताजा जल महासागरों में प्रवेश करने लगेगा। इससे अंटार्कटिक सरकम्पोलर करंट और अधिक कमजोर हो सकता है।   
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अंटार्कटिक सरकम्पोलर करंट के कमजोर होने के संभावित प्रभाव

  • जलवायु में अत्यधिक अस्थिरता बढ़ेगी। इससे कुछ क्षेत्रों में अधिक चरम मौसमी घटनाएं बढ़ सकती हैं।
  • महासागर की कार्बन अवशोषण क्षमता घटने से ग्लोबल वार्मिंग तेज हो सकती है।
  • अन्य महाद्वीपों से आक्रामक प्रजातियां पहुंचने पर अंटार्कटिका के नाज़ुक पारिस्थितिकी-तंत्र पर असर पड़ सकता है।
  • अंटार्कटिक बॉटम वाटर (AABW) के कमजोर होने के कारण विश्व की महासागरीय धाराओं की परिसंचरण प्रणाली प्रभावित हो सकती है।

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