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तेलंगाना के मुदुमल मेन्हिर (MUDUMAL MENHIRS OF TELANGANA)

तेलंगाना के मुदुमल मेन्हिर (MUDUMAL MENHIRS OF TELANGANA)

 
  • यह भारत की सबसे विशाल और बेहतर तरीके से संरक्षित महापाषाण (मेगालिथिक) खगोलीय वेधशालाओं में से एक है।
  • समय अवधि: लगभग 3500-4000 वर्ष प्राचीन 
  • अवस्थिति: तेलंगाना में कृष्णा नदी के तट के निकट
  • मुख्य विशेषताएं:
    • सबसे बड़ा महापाषाण समाधि स्थल: दक्षिण भारत में
    • रात्रिकालीन आकाश का चित्रण: यह दक्षिण एशिया का एकमात्र स्थल है, जहां रात्रि में आकाश के विविध नक्षत्रों जैसे- सप्तऋषि (Ursa Major), सिंह (Leo) तारामंडल आदि को पत्थरों के माध्यम से भौतिक रूप से दर्शाया गया है।
    • प्राचीन वेधशाला: यहां के मेन्हिर (सीधे खड़े पत्थर) खगोलीय घटनाओं जैसे संक्रांति, विषुव आदि के अनुरूप स्थापित हैं।
    • सांस्कृतिक महत्त्व: मेन्हिर को स्थानीय लोग पवित्र मानते थे, और उन्हें “निलुरल्ला तिमप्पा” (खड़े पत्थरों के तिमप्पा) कहते थे। इन मेन्हिर में से एक को देवी येल्लम्मा के रूप में पूजा जाता था।

महापाषाण स्थल क्या हैं?

  • मेन्हिर मानव निर्मित लंबवत रूप में स्थित पत्थर है, जो शीर्ष की ओर हल्का शंक्वाकार होता जाता है। आमतौर पर इन संरचनाओं का उपयोग शवाधान स्थल/ स्मारक के रूप में किया जाता था। डोल्मेन, मेन्हिर आदि संरचनाओं का संबंध प्रागैतिहासिक संस्कृतियों से है।
  • इस प्रकार की संरचनाओं का निर्माण सर्वप्रथम मुख्य रूप से नवपाषाण युग में आरंभ हुआ था और यह परंपरा ताम्र-पाषाण युग, कांस्य युग तथा लौह युग तक जारी रही।

भारत में महापाषाण संस्कृति (लगभग 1000 ईसा पूर्व से – पहली शताब्दी ईस्वी तक)

 

  • दक्षिण भारत में महापाषाण संस्कृति पूर्ण रूप से विकसित एक लौह युगीन संस्कृति थी।
  • महापाषाण संस्कृति मुख्य रूप से समाधि स्थलों और काले व लाल (BRW) रंग के मृदभांड से संबंधित थी।
    • कर्नाटक के ब्रह्मगिरि क्षेत्र में स्थित पिकलीहल और हल्लूर नामक स्थानों पर ऐसे सबसे पुराने महापाषाणिक शवाधान खोजे गए हैं, जिनमें लौह युग की शुरुआती पुरावस्तुएं प्राप्त हुई हैं।
  • महापाषाण समाधि स्थलों के प्रकार:
    • बहु-पाषाणीय (Polylithic)-डोल्मेन, केयर्न, क्रोमलेख, सिस्ट, आदि।
    • एकल-पाषाणीय (Monolithic)– मेन्हिर, आदि। (इन्फोग्राफिक देखें)। 
  • भौगोलिक वितरण: महापाषाण स्थल महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में पाए गए हैं।
    • भारतीय उपमहाद्वीप में 1400 से अधिक महापाषाण स्थल ज्ञात हैं। इनमें से 1116 स्थल केवल प्रायद्वीपीय भारत में हैं।
  • निर्वाह: आरंभ में माना जाता था कि ये घुमंतू चरवाहों की बस्तियां थीं।
    • हालांकि, बाद के प्रमाण यह संकेत देते हैं कि सुदूर दक्षिण में आरंभिक लौह युग के समुदाय कृषि, शिकार, मछली पकड़ने जैसी गतिविधियों पर निर्भर थे, जो यह दर्शाता है कि वे स्थायी रूप से बसकर जीवन यापन करते थे। 
  • मृदभांड के प्रकार: इसमें काले एवं लाल (BRW) तथा लाल एवं चमकदार काले मृदभांड शामिल
See also  ऋग्वैदिक आर्यों का सामाजिक जीवन - वैदिक काल, इतिहास, यूपीएससी, आईएएस 
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