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फ्रांसीसी क्रांति (1789-1799): कारण और परिणाम

फ्रांसीसी क्रांति (1789-1799): कारणऔर परिणाम | French Revolution 1789-99

किसी भी देश में होने वाली क्रांति के बीज उस देश की जनता की स्थिति और मनोदशा में निहित रहता है। असंतोष को
जन्म देने वाली भौतिक परिस्थितियाँ क्रांति हेतु आवश्यक पृष्ठभूमि तैयार करती है तथा विवेक चेतना बहुजन को उन
परिस्थितियों से मुक्ति पाने के लिए प्रेरित करती है। 1789 की फ्रांस की क्रांति आधुनिक इतिहास की असाधारण घटना थी। यह क्रांति (French Revolution) निरंकुश राजतंत्र, सामंती शोषण, वर्गीय विशेषाधिकार तथा प्रजा की भलाई के प्रति शासकों की उदासीनता के विरुद्ध प्रारंभ हुई थी. 

18वीं सदी के अंतिम चरणों में इस घटना ने ऐसे कई महत्वपूर्ण सिद्धांतों को कार्य के रूप में परिणत करने का प्रयास किया जैसे – स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व और यही सिद्धांत इस क्रांति का नारा बने!

फ्रांसीसी क्रांति: एक संक्षिप्त समयरेखा( टाईमलाईन)

चरण I – 1789- एस्टेट-जनरल की बैठक:

  • 18वीं शताब्दी के 70-80 के दशकों में विभिन्न कारणों से राजा और तत्कालीन राजव्यवस्था के प्रति फ्रांस के नागरिकों में विद्रोह की भावना पनप रही थी. यह विरोध धीरे-धीरे तीव्र होता चला गया. अंततोगत्वा 1789 में राजा लुई 16वाँ (Louis XVI) को एक सभा बुलानी पड़ी. इस सभा का नाम General State था.
  • फ्रांसीसी अभिजात वर्ग या कुलीन वर्ग फ्रांसीसी समाज के विशेषाधिकार प्राप्त सदस्य थे, जनसंख्या की दृष्टि से गैर-अभिजात वर्ग के सदस्यों की संख्या अभिजात वर्ग से अधिक थी। इसके बावजूद , अभिजात वर्ग हावी था।
  • 5 मई को एस्टेट-जनरल की बैठक से पहले, तीसरे एस्टेट (गैर-कुलीन वर्ग) के सदस्यों ने समान मतदान अधिकारों के लिए समर्थन जुटाना शुरू कर दिया, जो कि सिर(Head Count – एक व्यक्ति एक वोट) पर आधारित होगा न कि स्थिति के आधार पर।
  • जबकि मध्यम वर्ग का मानना था कि राजकोषीय और न्यायिक सुधार समय की मांग थी, कुलीन लोग विशेषाधिकार छोड़ने के विचार के खिलाफ थे, जो उन्होंने पारंपरिक प्रणाली के तहत एंजॉय किया था।
  • इसलिए, जब बैठक हुई, तो इस मतदान प्रक्रिया पर सवाल तीन वर्गों के बीच खुली दुश्मनी में बदल गया, और बैठक का वास्तविक उद्देश्य विफल हो गया। यहां तक कि आगे की बातचीत भी विफल रही और थर्ड इस्टेट ने अकेले बैठक की और 17 जून 1789 को औपचारिक रूप से ‘नेशनल असेंबली‘ की उपाधि अपनाई। 
  • वे पास के एक इनडोर टेनिस कोर्ट में इकट्ठे हुए और पद की शपथ ली। इसे टेनिस कोर्ट शपथ के नाम से जाना जाने लगा। इस नई सभा के सदस्यों ने तब तक न बिखरने का निर्णय लिया जब तक कि सुधारों की उनकी माँगें शुरू नहीं हो जातीं। कोई विकल्प नहीं बचा होने पर, लुईस XVI को तीन विधानसभाओं को नए आदेश में समाहित करना पड़ा।

     

चरण II – फ्रांसीसी क्रांति की शुरूआत

अब, अंततः फ्रांसीसी क्रांति शुरू हो गई। उक्त नेशनल असेंबली की बैठकें वर्साय में जारी रहीं, जबकि उसी समय पेरिस में भय और हिंसा व्याप्त थी।

    • 14 जुलाई 1789 को, इस डर से कि राजा लुई सोलहवें फ्रांस की नवगठित नेशनल असेंबली क सैन्य तख्तापलट करने वाले थे क्योंकि वे पास के इनडोर टेनिस कोर्ट में अपनी मांगों पर अड़े हुए थे, इससे पेरिसियों (पेरिस, फ्रांस के लोग) की भीड़ ने बैस्टिल बास्तिल नामक जेल ( एक पुराना किला) को घेर लिया। 
    • इस घटना ने फ्रांसीसी क्रांति की शुरुआत को चिह्नित किया। चूंकि यह घटना क्रांतिकारी संघर्ष का प्रतीक बन गई, इसलिए इससे किसान विद्रोह हुआ जिसमें कर संग्रहकर्ताओं और अभिजात वर्ग के कई घर जला दिए गए। 
    • इस क्रांति के कारण देश के अमीरों या कुलीनों को वहां से भागना पड़ा। इस अवधि को महान भय(the Great Fear) के रूप में जाना जाने लगा और पुरानी व्यवस्था अंततः समाप्त हो गई।

 चरण III – मानव अधिकारों की घोषणा

  • 4 अगस्त 1789 को नेशनल असेंबली ने मनुष्य और नागरिक के अधिकारों की घोषणा को अपनाया; यह चार्टर लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर आधारित था, जो जेना-जैक्स रोसेउ जैसे सभी प्रबुद्ध विचारकों के दार्शनिक और राजनीतिक विचारों से निकला था। यह घोषणापत्र 26 अगस्त 1789 को प्रकाशित हुआ।
  • इसके बाद 3 सितंबर 1791 को संविधान को अपनाया गया। इस नए कदम से एक नया फ्रांसीसी समाज अस्तित्व में आया जहां राजा को सीमित शक्तियां दी गईं। 
  • लेकिन यह जॉर्जेस डेंटन और मैक्सिमिलियन डी रोबेस्पिएरे जैसे नेशनल असेंबली के चरमपंथियों के लिए पर्याप्त नहीं था, जिन्होंने राजा की शक्तियों को सीमित करने के बजाय राजा के परीक्षण(जो चाहते थे कि लोइस XVI पर मुकदमा चलाया जाए) और सरकार के अधिक गणतंत्रीय स्वरूप की मांग की।

चरण IV – आतंक का शासन

क्रांति ने और अधिक क्रांतिकारी मोड़ ले लिया जब विद्रोहियों के एक समूह ने पेरिस में शाही निवास पर हमला किया और 10 अगस्त, 1792 को लुई सोलहवें को गिरफ्तार कर लिया।
  • अगले महीने पेरिस में ‘क्रांति के दुश्मन’ होने का आरोप लगाने वाले कई लोगों की हत्या कर दी गई। इनमें से कुछ में क्रांति की उदारवादी आवाज़ें भी शामिल थीं। विधान सभा को राष्ट्रीय सम्मेलन द्वारा प्रतिस्थापित किया गया जिसने फ्रांस गणराज्य की स्थापना और राजशाही के उन्मूलन की घोषणा की।
  • राजा लोइस XVI को 21 जनवरी, 1793 को राजद्रोह के लिए मौत की सजा देकर फाँसी दे दी गई और उनकी पत्नी, मैरी एंटोनेट नौ महीने बाद उनका अनुसरण करेंगी।(फ़ॉंसी)
  • राजा की फाँसी ने फ्रांसीसी क्रांति के सबसे हिंसक और अशांत चरण – आतंक के शासन – की शुरुआत को चिह्नित किया।
  • नेशनल कन्वेंशन रोबेस्पिएरे के नेतृत्व वाले एक चरमपंथी गुट के नियंत्रण में था। उनके तत्वावधान में, संदिग्ध राजद्रोह और एंटी-क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए हजारों लोगों को मार डाला गया। आतंक का शासन 28 जुलाई 1794 को रोबेस्पिएरे की फांसी के साथ समाप्त हो गया।
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रोबेस्पिएरे की मृत्यु ने एक उदारवादी चरण शुरू किया जिसके दौरान फ्रांस के लोगों ने आतंकवाद के शासनकाल के दौरान की गई ज्यादतियों के खिलाफ विद्रोह किया। इसे थर्मिडोरियन प्रतिक्रिया के रूप में जाना जाता था।

चरण V – फ्रांसीसी क्रांति का अंत

22 अगस्त, 1795 को, अब नरमपंथियों(जो आतंक के शासनकाल की ज्यादतियों से बच गए थे) से बना राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ उन्होंने एक नए संविधान के निर्माण को मंजूरी दी जिसने फ्रांस की द्विसदनीय विधायिका का निर्माण किया।

संसद द्वारा नियुक्त पांच सदस्यीय समूह की डायरेक्टरी के हाथों में अब पॉवर होगी। इसके किसी भी विरोध को जनरल, नेपोलियन बोनापार्ट के नेतृत्व वाली सेना द्वारा हटा दिया गया,.

डायरेक्ट्री के शासन में वित्तीय संकट और भ्रष्टाचार इसके अलावा, अधिकांश अधिकार( उस सेना को सौंप दिया था जिसने उन्हें सत्ता में बने रहने में मदद की थी।) के कारण डायरेक्टरी के खिलाफ आक्रोश चरम पर पहुंच गया और नेपोलियन ने स्वयं तख्तापलट कर उन्हें सत्ता से हटा दिया।

नेपोलियन ने स्वयं को “प्रथम कौंसल” नियुक्त किया। फ्रांसीसी क्रांति ख़त्म हो चुकी थी और नेपोलियन युग की शुरुआत होने वाली थी, उस दौरान महाद्वीपीय यूरोप पर फ्रांसीसी प्रभुत्व आदर्श बन गया था।

फ्रांस की क्रांति के क्या कारण थे ?

फ्रांस की क्रांति के राजनैतिक कारण: – 

i) निरंकुश राजतंत्र

राजतंत्र की निरंकुशता फ्रांसीसी क्रांति (French Revolution) का एक प्रमुख कारण था. राजा शासन का सर्वोच्च अधिकारी होता था. वह अपनी इच्छानुसार काम करता था. वह अपने को ईश्वर का प्रतिनिधि बतलाता था. राजा के कार्यों के आलोचकों को बिना कारण बताए जेल में डाल दिया जाता था.

राजा के अन्यायों और अत्याचारों से आम जनता तबाह थी. वह निरंकुश से छुटकारा पाने के लिए कोशिश करने लगी. फ्रांस में लुई 14वें के समय सत्ता का पूर्ण केन्द्रीकरण हो गया था। उसने पूर्ण निरंकुशता और शान-शौकत से राज्य किया। कई युद्धों और नई राजधानी वर्साय की स्थापना पर अत्यधिक व्यय करने के बावजूद उसने अपने उत्तराधिकारी को युद्ध न करने और जनहित के कार्य करने की सलाह दी।

ii) स्वतंत्रताओं का अभाव

फ्रान्स में शासन का अति केन्द्रीकरण था. शासन के सभी सूत्र राजा के हाथों में थे. भाषण, लेखन और प्रकाशन पर कड़ा प्रतिबंध लगा हुआ था. राजनैतिक स्वतंत्रता का पूर्ण अभाव था. लोगों को धार्मिक स्वतंत्रता भी नहीं थी. बंदी प्रत्यक्षीकरण नियम की व्यवस्था नहीं थी. न्याय और स्वतंत्रता की इस नग्न अवहेलना के कारण लोगों का रोष धीरे-धीरे क्रांति का रूप ले रहा था.

iii) राजप्रसाद का विलासी जीवन और धन का अपव्यय

राष्ट्र की सम्पूर्ण आय पर राजा का निजी अधिकार था. सम्पूर्ण आमदनी राजा-रानी और दरबारियों के भोग-विलास तथा आमोद-प्रमोद पर खर्च हुआ होता था. रानी बहुमूल्य वस्तुएँ खरीदने में अपार धन खर्च करती थी. एक ओर किसानों, श्रमिकों को भरपेट भोजन नहीं मिलता था तो दूसरी ओर सामंत, कुलीन और राजपरिवार के सदस्य विलासिता का जीवन बिताते थे.

iv) प्रशासनिक अव्यवस्था

फ्रान्स का शासन बेढंगा और अव्यवस्थित था. सरकारी पदों पर नियुक्ति योग्यता के आधार पर नहीं होती थी. राजा के कृपापात्रों की नियुक्ति राज्य के उच्च पदों पर होती थी. भिन्न-भिन्न प्रान्तों में अलग-अलग कानून थे. कानून की विविधता के चलते स्वच्छ न्याय की आशा करना बेकार था.

फ्रांस में लुई 14वें के समय सत्ता का पूर्ण केन्द्रीकरण हो गया था। उसने पूर्ण निरंकुशता और शान-शौकत से राज्य किया। कई युद्धों और नई राजधानी वर्साय की स्थापना पर अत्यधिक व्यय करने के बावजूद उसने अपने उत्तराधिकारी को युद्ध न करने और जनहित के कार्य करने की सलाह दी।

परन्तु उसका उत्तराधिकारी लुई 15वाँ कमजोर और विलासी था। उसने अपने पड़ोसियों के साथ कई असफल युद्ध लड़े। लुई 16वाँ गद्दी पर बैठा तो फ्रांस की स्थिति निराशाजनक थी। उसमें स्थिति को सुधारने की क्षमता नहीं थी। लुई 16वा न तो स्वयं निर्णय ले पाता था और न अपने मंत्रियों की उचित सलाह पर कार्य कर पाता था।

उस पर अपनी रानी मेरी एन्टोयनेट का प्रभाव था। वह राजनीति और प्रशासन में निरन्तर हस्तक्षेप करती थी। वह आस्ट्रिया की राजकुमारी थी तथा फ्रांस की जनता उसे पसन्द नहीं करती थी। क्रांति के समय उसने राजा की कठिनाईयों को बढ़ाया।

फ्रांस की क्रांति के सामजिक कारण

फ्रांस का समाज असमान और विघटित था। यह सामन्तवादी प्रवृत्तियों और विशेषाधिकारों के सिद्धान्त पर आधारित था। यह समाज तीन श्रेणियों में बंटा था |

i) पादरी वर्ग

फ्रांसमें रोमन कैथोलिक चर्च की प्रधानता थी. चर्च एक स्वतंत्र संस्था के रूप में काम कर रहा था. इसका अपना अलग संगठन था, अपना न्यायालय था और धन प्राप्ति का स्रोत था. देश की भूमि का पाँचवा भाग चर्च के पास था. चर्च की वार्षिक आमदनी करीब तीस करोड़ रुपये थी. चर्च स्वयं करमुक्त था, लेकिन उसे लोगों पर कर लगाने का विशेष अधिकार प्राप्त था. चर्च की अपार संपत्ति से बड़े-बड़े पादरी भोग-विलास का जीवन बिताते थे. धर्म के कार्यों से उन्हें कोई मतलब नहीं था. वे पूर्णतया सांसारिक जीवन व्यतीत करते थे.

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ii) कुलीन वर्ग

फ्रांसका कुलीन वर्ग सुविधायुक्त एवं सम्पन्न वर्ग था. कुलीनों को अनेक विशेषाधिकार प्राप्त थे. वे राजकीय कर से मुक्त थे. राज्य, धर्म और सेना के उच्च पदों पर कुलीनों की नियुक्ति होती थी. वे किसानों से कर वसूल करते थे. वे वर्साय के राजमहल में जमे रहते और राजा को अपने प्रभाव में बनाए रखने की पूरी कोशिश करते थे. कुलीनों के विशेषाधिकार और उत्पीड़न ने साधारण लोगों को क्रांतिकारी बनाया था.

iii) कृषक वर्ग

किसानों का वर्ग सबसे अधिक शोषित और पीड़ित था. उन्हें कर का बोझ उठाना पड़ता था. उन्हें राज्य, चर्च और जमींदारों को अनेक प्रकार के कर देने पड़ते थे. कृषक वर्ग अपनी दशा में सुधार लान चाहते थे और यह सुधार सिर्फ एक क्रांति द्वारा ही आ सकती थी.

iv) मजदूर वर्ग

मजदूरों और कारीगरों की दशा अत्यंत दयनीय थी. औद्योगिक क्रान्ति के कारण घरेलू उद्योग-धंधों का विनाश हो चुका था और मजदूर वर्ग बेरोजगार हो गए थे. देहात के मजदूर रोजगार की तलाश में पेरिस भाग रहे थे. क्रांति के समय (French Revolution) मजदूर वर्ग का एक बड़ा गिरोह तैयार हो चुका था.

v) मध्यम वर्ग

माध्यम वर्ग के लोग सामजिक असमानता को समाप्त करना चाहते थे. चूँकि तत्कालीन शासन के प्रति सबसे अधिक असंतोष मध्यम वर्ग में था, इसलिए क्रांति (French Revolution) का संचालन और नेतृत्व इसी वर्ग ने किया.

फ्रांस की क्रांति के आर्थिक कारण क्या थे ?

(i) फ्रांस की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी जिसे सुधारने के लिए वहाँ की जनता पर करों को लाद दिया गया था।

(ii) किसानों पर भूमि कर के अलावे धार्मिक कर, सामन्ती कर इत्यादि लगाए गए। दैनिक उपयोग की वस्तुओं पर भी कर लगा दिए गए।

(iii) औद्योगिक क्रांति शुरू होने से मशीनों का उपयोग शुरू हुआ और बेरोजगारों की संख्या बढ़ने लगी।

(iv) व्यापारियों पर अनेक तरह के कर लगाए गए। जैसे गिल्ड की पाबन्दी, सामन्ती कर, प्रान्तीय आयात कर इत्यादि । इस कारण वहाँ के व्यापार का विकास नहीं हो पाया।

बौद्धिक जागरण

विचारकों और दार्शनिकों ने फ्रांसकी राजनैतिक एवं सामाजिक बुराइयों की ओर लोगों का ध्यान आकृष्ट किया और तत्कालीन व्यवस्था के प्रति असंतोष, घृणा और विद्रोह की भावना को उभरा. Montesquieu, Voltaire, Jean-Jacques Rousseau के विचारों से मध्यम वर्ग सबसे अधिक प्रभावित था. Montesquieu ने समाज और शासन-व्यवस्था की प्रसंशा Power-Separation Theory का प्रतिपादन किया. वाल्टेयर ने सामाजिक एवं धार्मिक कुप्रथाओं पर प्रहार किया. रूसो ने राजतंत्र का विरोध किया और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर बल दिया. उसने जनता की सार्वभौमिकता के सिद्धांत (Principles of Rational and Just Civic Association) का प्रतिपादन किया. इन लेखकों ने लोगों को मानसिक रूप से क्रान्ति के लिए तैयार किया.

 

सैनिकों में असंतोष

फ्रांस की सेना भी तत्कालीन शासन-व्यवस्था से असंतुष्ट थी. सेना में असंतोष फैलते ही शासन का पतन अवश्यम्भावी हो जाता है. सैनिकों को समय पर वेतन नहीं मिलता था. उनके खाने-पीने तथा रहने की उचित व्यवस्था नहीं थी. उन्हें युद्ध के समय पुराने अस्त्र-शस्त्र दिए जाते थे. ऐसी स्थिति में सेना में रोष का उत्पन्न होना स्वाभाविक था.

फ्रांस की क्रांति के तात्कालिक कारण क्या थे ?

उपयुक्त हमने स्पष्ट किया है फ्रांस में वित्तीय संकट उत्पन्न हो गया था। लुई 16वें ने अपने अर्थमंत्रियों क्रमश: तुर्गो, नेकर, कालोन, और ब्रीएन की सलाह से इस संकट को दूर करने हेतु कई प्रयास किए। रानी और दरबारी सामन्तों के शड़यन्त्रों और सहयोग न करने के कारण सभी प्रयास असफल रहे।

अंतत: लुई 16वें ने अध्यादेशों के द्वारा सामन्त वर्ग पर कर लगाना चाहा; पेरिस की पार्ल मां ने स्पष्ट किया कि राजा को नया कर लगाने का अधिकार नहीं है; केवल राज्य को ही ‘स्टेटस जनरल’ के माध्यम से कर लगाने का अधिकार है।

इस प्रकार विशेषाधिकार सम्पन्न सांमत वर्ग ने राजा का विरोध करके फ्रांस को क्रांति की ओर धकेल दिया।

फ्रांस की क्रांति के प्रभाव या परिणाम क्या रहे ?

एक ओर कुछ विद्वानों ने फ्रासीसी क्रान्ति को विनाशकारी, अप्रगतिशील तथा अराजकतावादी आन्दोलन कहा है; तो दूसरी ओर विद्वानों ने इसे विश्व की महानतम घटना कहा है। यह विश्व क्रांति थी; जिसने समूची मानव जाति के इतिहास पर गहरी छाप छोड़ी।

फ्रांस की क्रांति के राजनीतिक प्रभाव

  • निरंकुश शासन का अंत और गणतंत्र की स्थापना
  • लिखित संविधान
  • लोकप्रिय सम्प्रभुता का सिद्धांत
  • मानव अधिकारों की घोषणा
  • प्रशासन में सुधार
  • समान कानून और कानूनों का संग्रह
1.निरंकुश शासन का अंत और गणतंत्र की स्थापना

इस क्रांति से फ्रांस में पुराना निरंकुशता और तानाशाही का युग समाप्त हो गया। दैवी अधिकारों के सिद्धांत पर आधारित राजतंत्र समाप्त हो गया और उसके स्थान पर संवैधानिक राजतंत्र और बाद में गणतंत्र स्थापित हो गया।

2. लिखित संविधान

क्रांति के बाद फ्रांस के लिए लिखित संविधान बनाया गया जिसमें व्यवस्थापिका, कार्यपालिका, और न्यायपालिका के अधिकार और कर्तव्य स्पष्ट किये गये और नागरिकों को मत देने का अधिकार प्राप्त हुआ। यह संविधान फ्रांस का ही नहीं, अपितु यूरोप का भी प्रथम लिखित संविधान था। 

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3. लोकप्रिय सम्प्रभुता का सिद्धांत

क्रांति ने राज्य के संबंध में एक नवीन धारणा को जन्म दिया और राजनीति में नवीन सिद्धांत प्रतिपादित किये। लोकप्रियता जनता में निहित होती है। इस क्रांति ने यह प्रमाणित कर दिया कि प्रजा ही वास्तव में राजनीतिक अधिकारों की स्वामी है और सार्वभैाम या सार्वजनिक सत्ता उसके पास ही है। 

4. मानव अधिकारों की घोषणा

क्रांति के दौरान मानव के मौलिक अधिकारों की घोषणा की गई। उसमें मनुष्य के बहुमुखी विकास के लिए आवश्यक मूलभूत अधिकारों को स्पष्ट शब्दो में अभिव्यक्त किया गया। कानून की दृष्टि में सभी नागरिकों को समानता प्रदान की गई। इससे जन सामान्य की आशा-आकांक्षा का विस्तार हुआ और फ्रासं में एक लोकतंत्रीय समाज का निर्माण हुआ। 

5. प्रशासन में सुधार

क्रांति के बाद प्रशासन का पुर्नगठन किया गया। फ्रासं को समान 83 भागों में विभक्त कर उनको कैन्टनों और कम्यनूों में विभाजित किया। पदों पर सुयोगय और सक्षम अधिकारी नियुक्त किय गए। पक्षपातपूर्ण कर व्यवस्था तथा अव्यवस्थित फिजूल खर्चियों के स्थान पर समान कर-व्यवस्था और नियमित बजट प्रणाली स्थापित की गई।

न्यायालयों को कार्यकारिणी और व्यवस्थापिका के प्रभाव और नियंत्रण से मुक्त कर दिया गया। फाजैदारी मकुदमों के लिये ‘ज्यूरी प्रथा’ प्रारंभ की गई। वंशानुगत और भ्रष्ट न्यायाधीशो के स्थान पर नव निर्वाचित न्यायाधीशो की व्यवस्था की गई।

6. समान कानून और कानूनों का संग्रह

कानूनों की विविधता समाप्त कर दी गई। नेपोलियन ने विभिन्न कानूनों को एक करके दीवानी, फौजदारी तथा अन्य कानूनों का व्यवस्थित संग्रह करवाया जिससे फ्रांस में एक सी कानून व्यवस्था स्थापित की गई। इस कानून-संग्रह को ‘‘कोड ऑफ नेपोलियन’’ कहते हैं। बाद में आस्ट्रिया, इटली, जर्मनी, बेल्जियम, हॉलेण्ड और अमेरिका आदि देशों में भी काडे ऑफ नेपोलियन में आवश्यकतानुसार आंशिक परिवर्तन करके उसे लागू कर दिया गया।

फ्रांसीसी क्रांति के धार्मिक एवं सामाजिक प्रभाव क्या रहे ?

  • चर्च का पुर्नगठन
  • सामाजिक समानता का युग
  • कृषकों की दशा में सुधार
  • शिक्षा और साहित्य में प्रगति
  • राष्ट्रीय भावना का विकास

फ्रांसीसी क्रांति के आर्थिक प्रभाव क्या रहे ?

आर्थिक संकटों का निराकरण करने के लिये ही फ्रांस में क्रांति का प्रारंभ हुआ था।

  • आर्थिक दुव्र्यवस्था सुधारने के लिये चर्च की भूमि का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया; सामन्तों की भूिम को कृषकों में विभक्त किया गया।
  • मध्यम वर्ग के लोगो ने भी सम्पत्ति और भूमि क्रय कर ली।
  • सामन्त प्रथा के अवसान के बाद करों का भार सभी वर्गो के लिये समान कर दिया गया।
  • सभी को कर देना आवश्यक हो गया।
  • अनुचित अन्यायपूर्ण करों का अंत कर दिया गया।
  • शाही व्ययशीलता को समाप्त कर दिया गया।

इस प्रकार प्रशासन व्यवस्था में बजट प्रणाली और बचत के कारण आर्थिक स्थिरता आ गई।

फ्रांसीसी क्रांति के नवीन वाणिज्य नीति पर क्या प्रभाव पडा ?

व्यापार पर लगे प्रतिबंध समाप्त कर दिये गये, नाप तोल में दशमलव पद्धति प्रारंभ की गई। श्रमिकों व कारीगरों के लिये दोषपूर्ण गिल्ड व्यवस्था समाप्त कर दी गई । पूंजी और साख के लिये बैंक ऑफ फ्रांस की स्थापना की गई। नेपोलियन के शासनकाल में सड़कों, पुलों और बंदरगाहों का निर्माण किया गया जिससे व्यापार और उद्योगों की बहुत प्रगति हुई।

5. फ्रांसीसी क्रांति का यूरोप पर क्या प्रभाव पडा ?

  • स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व की भावना
  • विप्लवों और क्रांतियों का नवीन युग
  • यूरोप में क्रांति के दूरगामी परिणाम
  • अंतर्राष्ट्रीयता का प्रसार
  • यूरोप में उच्चकोटि का साहित्य सृजन

फ्रांसीसी क्रांति का महत्व : –

  1. फ्रांसीसी क्रांति (1789-1799) ने फ्रांस में बड़े पैमाने पर राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव लाए. इस क्रांति ने निरंकुश राजशाही को खत्म किया, राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया, धर्मनिरपेक्षता की व्यवस्था स्थापित की, और स्वतंत्रता, समानता और लोकतंत्र की नई मान्यताओं को उजागर किया ।
  2. इस क्रांति ने मानवाधिकार की अवधारणा को बढ़ावा दिया, जो आधुनिक लोकतंत्र की आधारशिला बन गई. क्रांति के दौरान अपनाई गई मनुष्य और नागरिक के अधिकारों की घोषणा ने व्यक्तिगत अधिकारों और स्वतंत्रता के सिद्धांत को स्थापित किया।
  3. इस क्रांति ने फ्रांस में सामाजिक भेदभावपूर्ण वर्ग व्यवस्था को नष्ट कर दिया और सभी के लिए समानता की घोषणा की. इससे मध्यम वर्ग का उदय हुआ जिसने शिक्षा प्राप्त कर उत्तरदायित्व के पदों पर आसीन हुए।
  4. इस क्रांति के नारे स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व का प्रसार पूरे यूरोप में हुआ। इस क्रांति ने समस्त विश्व को प्रभावित किया।क्रांति के फलस्वरूप यूरोप भर में निरंकुश शासन की नींव हिल गई। राष्ट्रीय एकता और संवैधानिक स्वतंत्रता के विचार पनपने लगे।

फ्रांसीसी क्रांति के निष्कर्ष:

फ्रांसीसी क्रांति 1787 में शुरू हुई और 1799 में खत्म हुई.  इसने फ्रांस के इतिहास में मौलिक सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक बदलाव लाए. क्रांति ने स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के क्रांतिकारी विचारों को जन्म दिया.  क्रांति के प्रेरक शब्द थे- “स्वतंत्रता, समानता और बन्धुत्व”. इन तीन शब्दों ने विश्व की राजनीतिक व्यवस्था के स्वरूप में आमूलचूल परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया.

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