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राजकुमारी अमृत कौर: स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और सामाजिक सुधार में अग्रणी

राजकुमारी अमृत कौर: स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और सामाजिक सुधार में अग्रणी

राजकुमारी अमृत कौर, जिनका जन्म 2 फरवरी, 1887 को बादशाह बाग, लखनऊ, भारत में हुआ था, एक असाधारण व्यक्तित्व थीं, जिनके जीवन और योगदान ने राष्ट्र पर अमिट छाप छोड़ी। उनकी यात्रा विविध अनुभवों, सामाजिक सुधार के प्रति अटूट प्रतिबद्धता और भारत की स्वतंत्रता की खोज में अडिग विश्वास से भरी थी।

मन में नक्शे बनाना
 
  • प्रारंभिक वर्ष : राजकुमारी अमृत कौर का जन्म एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। उनके पिता राजा सर हरनाम सिंह अहलूवालिया और माँ प्रिसिला गोलकनाथ ने उनमें उद्देश्य और कर्तव्य की भावना को प्रबल रूप से भर दिया था। दस भाई-बहनों के बीच पली-बढ़ी, वह इकलौती बेटी थीं, जिसने लैंगिक समानता के बारे में उनके दृष्टिकोण को प्रभावित किया।
  • विदेश में शिक्षा : उनकी शिक्षा यात्रा उन्हें इंग्लैंड के डोरसेट में शेरबोर्न स्कूल फॉर गर्ल्स से लेकर प्रतिष्ठित ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय तक ले गई। पश्चिमी शिक्षा के इस संपर्क ने उनके विश्वदृष्टिकोण को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • भारत वापसी : 1918 में अमृत कौर की भारत वापसी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के जोश के साथ हुई। इस निर्णायक क्षण ने राष्ट्र के लिए उनकी आजीवन प्रतिबद्धता के लिए मंच तैयार किया।

एम्स का गठन करने वाली राजकुमारी अमृत कौर

राजकुमारी अमृत कौर कपूरथला की महारानी थींपर उन्होंने स्वयं को एक महारानी के तरह ज़ाहिर नहीं कियालेकिन उनके व्यक्तित्च में एक तेज था!

राजकुमारी अमृत कौर को अधिकांश लोग स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने वाली अग्रणी महिला और संविधान सभा में शामिल महिला प्रतिनिधि के सदस्य के रूप में जानते हैं। बहुत कम लोगों को यह पता है कि स्वतंत्रता आंदोलन में उनके शामिल होने की पहली प्रेरणा गोपालकृष्ण गोखले थे। अमृतकौर ने दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद महात्मा गांधी का पहला भाषण, जो कांग्रस के मुबंई अधिवेशन में 1915 में दिया था, सुना, जिसे सुनकर वे गांधीजी के विचारों के प्रति आकृष्ट हुईं।

महात्मा गांधी से उनकी मुलाकात 1934 में हुई, उसके बाद वह स्वयं को रोक न सकी और अपने एक नौकर के साथ सेवाग्राम आश्रम पहुंच गई। गांधीजी ने उनको कहा उनका पहला कर्तव्य माता-पिता की सेवा करना है। माता-पिता के देहांत के बाद अमृत कौर ने गांधीजी के रचनात्मक कार्यो में भाग लेना आरम्भ कर दिया। महात्मा गांधी के बेटियों में उनका भी नाम दर्ज हो गया। बापू उन्हें पत्रों में कई संबोंधन से देते ‘प्रिय बहन’, ‘प्रिय विद्रोही’, ‘प्रिय मुर्खा’। जब ‘प्रिय मुर्खा’ से संबोंधन ‘प्रिय अमृता’ में बदला तो अमृता बापू से काफी नाराज़ रहीं, जिस पर बापू को सफाई तक देनी पड़ी। जब वह गांधी के सफाई से सहमत हुई तब उन्होंने उनके सचिव होने की ज़िम्मेदारी स्वीकार की जो 16 साल तक उन्होंने निभाया भी।

राजकुमारी अमृत कौर का जन्म और पढ़ाई

राजा सर हरनाम सिंह जिन्होंने ईसाई धर्म अपना लिया था, के घर 2 फरवरी 1889 को अमृत कौर का जन्म नवाबों के शहर लखनऊ में हुआ। उनकी इसाई मां ने उनका लालन-पालन बहुत ही सख्ती से किया। ईसाई धर्मावलंबी होने के बाद भी अमृत कौर के पूरे सार्वजनिक जीवन पर कभी भी ईसाई धर्म के विचार हावी नहीं हुए।

मात्र 12 साल के ही उम्र में उन्हें आक्सफोर्ड अपनी पढ़ाई के लिए भेज दिया गया। जहां उन्होंने अपनी एम.ए की पढ़ाई ही पूरी नहीं की, हॉकी, क्रिकेट और टेनिस जैसे खेलों में कप्तान की भूमिका में स्वयं को निखारा भी। अपने सिद्धांतों पर अडिग रहने वाली महिला के रूप में 20 साल के उम्र में वह भारत आईं और अविवाहित रहते हुए पूरा जीवन मानवता के सेवा को अर्पित करने का फैसला किया।

1919 में जालियांवाला हत्याकांड के बाद उन्होंने राजनीति में उतरने का मन बना लिया। माता-पिता के देहांत के बाद अमृत कौर ने गांधीजी के रचनात्मक कार्यो में भाग लेना आरम्भ कर दिया। वर्ष 1934 से वह गांधीजी के आश्रम में ही रहने लगीं। उन्हें ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के दौरान भी जेल हुई।

गांधीजी के निर्देशानुसार उन्होंने बुनकर संघों के कार्यों को व्यवस्थित करने के लिए पंजाब की यात्रा की।  इस भूमिका में उन्होंने कई वर्षों तक हरिजन पत्र के संपादन में भी गांधीजी का सहयोग किया। गांधीजी के नेतृत्व में उन्होंने दांडी मार्च में भी भाग लिया और जेल गई। 1937 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की प्रतिनिधि के रूप में वर्तमान खैबर-पख्तूनख्वा में बन्नू के लिए सद्भावना मिशन पर गई, उनको फिर से गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर राजद्रोह का आरोप लगा।

तीस के दशक में  जब भारत में महिला आंदोलन अपने संगठनात्मक रूप में विस्तार पाना शुरू किया तब मार्गरेट कजिन्स के साथ अमृत कौर ने उसमें अपनी भूमिका का निर्वाह किया। कुछ समय तक वह अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की अध्यक्ष भी रहीं। महिलाओं के सामाजिक स्थिति में सुधार और देश की आजादी में उनकी गहरी रूची थी।

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी  गिरफ्तारी दांडी मार्च और भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान हुई। पर 1942 में जब गांधीजी गिरफ्तार कर लिए गए, उनको उनके ही घर में नज़रबंद कर दिया गया। 1945 में विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद जब कांग्रेस के नेताओं की रिहाई शुरू हुई, तब उन्हें भी राहत दी गयी।

एम्स के गठन की प्रथम अध्यक्षा महारानी अमृत कौर

अंतरिम सरकार का जब गठन किया गया, तब हिमाचल के मंडी से उन्होंने अपना पहला चुनाव लड़ा। पंडित नेहरू ने उनको प्रथम केद्रिय स्वास्थ्य मंत्री की जिम्मेदारी दी। वह खेल मंत्री, इंडियन रेड क्रॉस और एम्बुलेंस कोर की भी अध्यक्ष रहीं। भारतीय राज्यक्ष्मा संघ की स्थापना में उनकी मुख्य भूमिका रही।

एम्स के गठन की प्रथम अध्यक्षा भी रही। इंडियन काउंसिल आंफ चाइल्ड वेलफेयर, ट्यूबरक्लोसिस एसोसियेशन ऑफ़ इंडिया, राजकुमारी अमृत कौर कॉलेज ऑफ़ नर्सिंग और सेन्ट्रल लेप्रोसी एंड रीसर्च इंस्टिट्यूट की स्थापना का श्रेय अमृत कौर को जाता है जो बाद में सुशीला नायर के अध्यक्षता में पूरा हो सका।

1957 के आस-पास उनसे स्वास्थ्य मंत्रालय का दर्जा ले लिया गया और विश्व स्वास्थ्य संगठन के कार्यक्रमों में प्रतिनिधित्व करने का मौका दिया गया। वह वर्ल्ड हेल्थ असेम्बली की प्रेसिडेंट भी रहीं, इससे पहले कोई भी महिला इस पद तक नहीं पहुंची थी, वह इस पद पर पहुंचने वाली एशिया की प्रथम महिला थी।बाद में वह हिमाचल प्रदेश विधानसभा में राज्यपाल की निर्वाचित सदस्य रही।

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 राजकुमारी अमृत कौर ने अपनी सारी संपत्ति राष्ट्र को समर्पित की

उनका निधन पंडित नेहरू के निधन के कुछ महीने पूर्व, उनके विलिंगडन क्रेसेंट बंगले पर हार्ट अटैक से हुआ। मरने के पहले उन्होंने अपनी सारी संपत्ति राष्ट्र को समर्पित कर दी और अपने सहायिका और सेविकाओं को महिला चिकित्सक सहयोगी बनवा दिया। उनकी इच्छा थी कि उन्हें दफनाया नहीं जाए, बल्कि जलाया जाए।

भले ही वह कपूरथल्ला की महारानी थीं, पर उन्होंने कभी भी स्वयं को एक महारानी के तरह ज़ाहिर नहीं किया। उनके व्यक्तित्च का तेज था जो उन्हें मृदुल और रोबदार बना देता था।टाइम मैगज़ीन ने पिछले सौ सालों में दुनिया की सबसे प्रभावशाली और ताकतवर 100 महिलाओं के नाम इसमें शामिल किए गए तब लगातार 72 सालों तक वह इस लिस्ट में रहीं। 1999 में उन्हें टाइम मैंगज़ीन ने उन्हें ‘पर्सन ऑफ़ द ईयर’ के टाइटल से नवाजा।

राजकुमारी अमृत कौर वह महिला हैं जिनको जानते-समझते हुए इस बात का एहसास होता है कि आज़ाद भारत में भारत स्वस्थ बने इसकी भरपूर प्रयास उन्होंने किया ।

उनकी दो पुस्तकें टू वुमेन और चैलेंज टू वुमेन उनकी विचारधारा का परिचय देती है।

राजनीतिक और सामाजिक योगदान

  • भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ाव : उनके पिता का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ घनिष्ठ संबंध था, तथा गोपाल कृष्ण गोखले के मार्गदर्शन ने उन्हें युवावस्था में ही राजनीतिक परिदृश्य से परिचित करा दिया।
  • महात्मा गांधी से मुलाकात : 1919 में, बम्बई (मुंबई) में, उन्हें महात्मा गांधी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ, एक भाग्यशाली मुलाकात जिसने उनके भविष्य को आकार दिया।
  • सामाजिक सुधारों की समर्थक : अमृत कौर ने पर्दा प्रथा, बाल विवाह का कड़ा विरोध किया और देवदासी प्रथा के खिलाफ अभियान चलाया, जिससे सामाजिक सुधार के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता प्रदर्शित हुई।
  • अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की सह-स्थापना : 1927 में, उन्होंने अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की सह-स्थापना की और 1930 में इसके सचिव और बाद में 1933 में अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
  • स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी : अमृत कौर ने दांडी मार्च, भारत छोड़ो आंदोलन जैसी ऐतिहासिक घटनाओं में सक्रिय रूप से भाग लिया और जलियांवाला बाग हत्याकांड की आलोचना की।
  • कारावास : दांडी मार्च में भाग लेने, बन्नू में राजद्रोह के आरोप और भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका के कारण उन्हें कारावास का सामना करना पड़ा।
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स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा नेतृत्व

  • भारत की प्रथम स्वास्थ्य मंत्री : 1947 में, अमृत कौर ने भारत की प्रथम स्वास्थ्य मंत्री का पद संभाला, 1957 तक इस पद पर रहीं, तथा उन्होंने खेल और शहरी विकास मंत्री के रूप में भी कार्य किया।
  • स्वास्थ्य देखभाल सुधार : अपने नेतृत्व में, उन्होंने महिला अधिकारों की वकालत की, मलेरिया और तपेदिक उन्मूलन के प्रयासों का नेतृत्व किया और बीसीजी टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया।
  • शैक्षिक भूमिकाएँ : शिक्षा के प्रति अमृत कौर का समर्पण अखिल भारतीय महिला शिक्षा निधि एसोसिएशन की अध्यक्ष और नई दिल्ली में लेडी इरविन कॉलेज की कार्यकारी समिति की सदस्य के रूप में उनकी भूमिकाओं तक फैला हुआ था।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व : उन्होंने लंदन (1945) और पेरिस (1946) में यूनेस्को सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया, तथा वैश्विक मंच पर साक्षरता और महिला शिक्षा पर जोर दिया।

धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान

  • पंजाबी ईसाई : पंजाबी ईसाई के रूप में अमृत कौर की पहचान महत्वपूर्ण थी। वह ईसाई मिशनरी संगठनों से सक्रिय रूप से जुड़ी थीं और जवाहरलाल नेहरू के साथ संपर्क सूत्र के रूप में काम करती थीं ।

महत्वपूर्ण योगदान और विरासत

  • एम्स के पीछे प्रेरक शक्ति : उनके अथक प्रयासों के फलस्वरूप 1956 में लोकसभा में एक विधेयक प्रस्तुत कर एम्स की स्थापना की गई। इस प्रयास के समर्थन के लिए न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ-साथ रॉकफेलर फाउंडेशन और फोर्ड फाउंडेशन जैसे संगठनों से भी धन एकत्र किया गया।
  • संविधान सभा सदस्य : अमृत कौर ने भारत के संविधान के प्रारूपण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, सार्वभौमिक मताधिकार की वकालत की, महिला आरक्षण का विरोध किया और समान नागरिक संहिता का समर्थन किया।
  • कैबिनेट में प्रथम महिला : भारतीय कैबिनेट में प्रथम महिला के रूप में, उन्होंने मलेरिया और तपेदिक के खिलाफ अभियान चलाया, और रिदम पद्धति के प्रति उनकी वकालत ने स्वास्थ्य सेवा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को उजागर किया।
  • नर्सिंग और खेल विकास : उन्होंने भारतीय बाल कल्याण परिषद, भारतीय राष्ट्रीय खेल क्लब की स्थापना की, और भारतीय रेड क्रॉस सोसाइटी और राजकुमारी अमृत कौर नर्सिंग कॉलेज की अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
  • संसदीय योगदान : अमृत कौर लोकसभा (1952-1957) और राज्यसभा (1957-1964) दोनों की सदस्य थीं। उन्होंने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, भारतीय क्षय रोग संघ और सेंट जॉन एम्बुलेंस कोर जैसी संस्थाओं की अध्यक्ष के रूप में भी काम किया। रेने सैंड मेमोरियल अवार्ड और टाइम मैगज़ीन की वूमन ऑफ़ द ईयर (1947) सहित उनके कई पुरस्कार उनके असाधारण योगदान को दर्शाते हैं।
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निष्कर्ष

अंत में, राजकुमारी अमृत कौर एक बहुमुखी व्यक्तित्व थीं, जिन्होंने भारत के स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और सामाजिक सुधार क्षेत्रों में असाधारण योगदान दिया। भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री और भारतीय राजनीति में अग्रणी व्यक्ति के रूप में, उन्होंने देश की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को आकार देने और सामाजिक सुधारों की वकालत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी विरासत पीढ़ियों को प्रेरित और प्रभावित करती है, जो समाज और अपने प्यारे देश की बेहतरी के लिए उनकी अटूट प्रतिबद्धता का प्रमाण है।

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