विजयनगर साम्राज्य
स्थापना
इतिहासकारों के अनुसार विजयनगर साम्राज्य की स्थापना 5 भाइयों वाले परिवार के 2 सदस्यों हरिहर और बुक्का ने की थी। वे वारंगल के ककातीयों के सामंत थे और बाद में आधुनिक कर्नाटक में काम्पिली राज्य में मंत्री बने थे। जब एक मुसलमान विद्रोही को शरण देने पर मुहम्मद तुगलक ने काम्पिली को रौंद डाला, तो इन दोनों भाइयों को भी बंदी बना लिया गया था। इन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया और तुगलक ने इन्हें वहीं विद्रोहियों को दबाने के लिए विमुक्त कर दिया। तब मदुराई के एक मुसलमान गवर्नर ने स्वयं को स्वतंत्र घोषित कर दिया था और मैसूर के होइसल और वारगंल के शासक भी स्वतंत्र होने की कोशिश कर रहे थे। कुछ समय बाद ही हरिहर और बुक्का ने अपने नए स्वामी और धर्म को छोड़ दिया। उनके गुरु विद्यारण के प्रयत्न से उनकी शुद्धि हुई और उन्होंने विजयनगर में अपनी राजधानी स्थापित की।
विजयनगर के राजवंश
विजयनगर साम्राज्य पर जिन राजवंशों ने शासन किया, वे निम्नलिखित हैं-
- संगम वंश- 1336-1485 ई.
- सालुव वंश- 1485-1505 ई.
- तुलुव वंश- 1505-1570 ई.
- अरविडु वंश- 1570-1650 ई.
संगम वंश
विजयनगर साम्राज्य के ‘हरिहर’ और ‘बुक्का’ ने अपने पिता “संगम” के नाम पर संगम वंश (1336-1485 ई.) की स्थापना की थी।
इस वंश में जो राजा हुए, उनके नाम व उनकी शासन अवधि निम्नलिखित हैं-
- हरिहर प्रथम – (1336 – 1356 ई.)
- बुक्का प्रथम – (1356 – 1377 ई.)
- हरिहर द्वितीय – (1377 -1404 ई.)
- विरुपाक्ष प्रथम – (1404 ई.)
- बुक्का द्वितीय – (1404 – 1406 ई.)
- देवराय प्रथम – (1406 – 1410 ई.)
- विजयराय – (1410 -1419 ई.)
- देवराय द्वितीय – (1419 – 1444 ई.)
- मल्लिकार्जुन – (1447 – 1465 ई.)
- विरुपाक्ष द्वितीय- (1465 – 1485 ई.
हरिहर प्रथम (1336 से 1353 ई. तक) – हरिहर प्रथम ने अपने भाई बुक्काराय के सहयोग से विजयनगर साम्राज्य की स्थापना की। उसने धीरे-धीरे साम्राज्य का विस्तार किया 1353 ई. में हरिहर की मृत्यु हो गई।
हरिहर द्वितीय (1379 से 1404 ई. तक) – बुक्काराय की मृत्यु के उपरान्त उसका पुत्र हरिहर द्वितीय सिंहासन पर बैठा तथा साथ ही महाराजाधिराज की पदवी धारण की। इसने कई क्षेत्रों को जीतकर साम्राज्य का विस्तार किया। 1404 ई. में हरिहर द्वितीय कालकवलित हो गया।
