वीर सावरकर और उनका योगदान
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स्टूडेंट्स के लिये नोट्स
यूपीएससी के दृष्टिकोण से निम्नलिखित बातें महत्वपूर्ण हैं:
प्रारंभिक स्तर: वीर सावरकर
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री ने वीर सावरकर की पुण्यतिथि (26 फरवरी) पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की तथा भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान को याद किया।
प्रमुख बिंदु
वीर सावरकर के बारे में:
- जन्म: इनका जन्म 28 मई, 1883 को महाराष्ट्र के नासिक ज़िले के भागुर ग्राम में हुआ था।
- संबंधित संगठन और कार्य:
- उन्होंने अभिनव भारत सोसाइटी नामक एक भूमिगत सोसाइटी (Secret Society) की स्थापना की।
- सावरकर यूनाइटेड किंगडम गए और इंडिया हाउस (India House) तथा फ्री इंडिया सोसाइटी (Free India Society) जैसे संगठनों से जुड़े।
- वे वर्ष 1937 से 1943 तक हिंदू महासभा के अध्यक्ष रहे।
- सावरकर ने ‘द हिस्ट्री ऑफ द वार ऑफ इंडियन इंडिपेंडेंस’ नामक एक पुस्तक लिखी जिसमें उन्होंने 1857 के सिपाही विद्रोह में इस्तेमाल किये गए छापामार युद्ध (Guerilla Warfare) के तरीकों (Tricks) के बारे में लिखा था।
- उन्होंने ‘हिंदुत्व: हिंदू कौन है?’ पुस्तक भी लिखी।
- मुकदमे और सज़ा:
- वर्ष 1909 में उन्हें मॉर्ले-मिंटो सुधार (भारतीय परिषद अधिनियम 1909) के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया।
- 1910 में क्रांतिकारी समूह इंडिया हाउस के साथ संबंधों के लिये गिरफ्तार किया गया।
- सावरकर पर एक आरोप नासिक के कलेक्टर जैक्सन की हत्या के लिये उकसाने का था और दूसरा भारतीय दंड संहिता 121-ए के तहत राजा (सम्राट) के खिलाफ साजिश रचने का था।
- दोनों मुकदमों में सावरकर को दोषी ठहराया गया और 50 वर्ष के कारावास की सज़ा सुनाई गई, जिसे काला पानी भी कहा जाता है, उन्हें वर्ष 1911 में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में सेलुलर जेल ले जाया गया।
अभिनव भारत सोसाइटी (यंग इंडिया सोसाइटी):
- यह वर्ष 1904 में विनायक दामोदर सावरकर और उनके भाई गणेश दामोदर सावरकर द्वारा स्थापित एक भूमिगत सोसाइटी (Secret Society) थी।
- प्रारंभ में नासिक में मित्र मेला के रूप में स्थापित समाज कई क्रांतिकारियों और राजनीतिक कार्यकर्त्ताओं के साथ भारत तथा लंदन के विभिन्न हिस्सों में शाखाओं से जुड़ा था।
इंडिया हाउस:
- इसकी स्थापना श्यामजी किशन वर्मा ने वर्ष 1905 में लंदन में की थी।
- इसे लंदन में भारतीय छात्रों के बीच राष्ट्रवादी विचारों को बढ़ावा देने के लिये खोला गया था।
फ्री इंडिया सोसाइटी:
- सावरकर वर्ष 1906 में लंदन गए। उन्होंने जल्द ही इटैलियन राष्ट्रवादी ग्यूसेप माज़िनी (सावरकर ने माज़िनी की जीवनी लिखी थी) के विचारों के आधार पर फ्री इंडिया सोसाइटी की स्थापना की।
हिंदू महासभा:
- अखिल भारत हिंदू महासभा (Akhil Bharat Hindu Mahasabha) भारत के सबसे पुराने संगठनों में से एक है, इसका गठन वर्ष 1907 में हुआ था। प्रतिष्ठित नेताओं ने वर्ष 1915 में अखिल भारतीय आधार पर इस संगठन का विस्तार किया।
- इस संगठन की स्थापना करने वाले और अखिल भारतीय सत्रों की अध्यक्षता करने वाले प्रमुख व्यक्तित्वों में पंडित मदन मोहन मालवीय, लाला लाजपत राय, वीर विनायक दामोदर सावरकर आदि शामिल थे।
वीर सावरकर के बारे में: जीवन, योगदान और विरासत
विवरण | |
वीर सावरकर कौन थे? | • 28 मई, 1883 को भगूर, महाराष्ट्र में जन्मे । • सशस्त्र प्रतिरोध के लिए अभिनव भारत सोसाइटी (1904) की स्थापना की। • लंदन में इंडिया हाउस (1906) और फ्री इंडिया सोसाइटी का नेतृत्व किया । • 1910 में गिरफ्तार हुए , सेलुलर जेल (काला पानी, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह) में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई । • हिंदू महासभा के अध्यक्ष बने (1937-1943) । • आमरण अनशन के बाद 26 फरवरी, 1966 को उनकी मृत्यु हो गई। |
उनका योगदान | • ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र क्रांति की वकालत की। • धर्म से परे भारतीय पहचान को परिभाषित करते हुए हिंदुत्व (1923) की अवधारणा गढ़ी । • हिंदू राजनीतिक एकता पर जोर देते हुए विभाजन का विरोध किया । • निष्क्रिय प्रतिरोध के बजाय सैन्य राष्ट्रवाद का समर्थन किया। • लेखन और विचारधारा ने भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलनों को प्रभावित किया । |
साहित्यिक कृतियाँ | • भारतीय स्वतंत्रता का पहला युद्ध (1909): 1857 के विद्रोह को राष्ट्रवादी संघर्ष के रूप में फिर से परिभाषित किया । • हिंदुत्व: हिंदू कौन है? (1923): हिंदुत्व की वैचारिक नींव रखी । • माई ट्रांसपोर्टेशन फॉर लाइफ (1950): सेलुलर जेल में उनके कारावास के संस्मरण । • भारतीय इतिहास के छह गौरवशाली युग: विदेशी आक्रमणकारियों के खिलाफ हिंदू प्रतिरोध की वकालत की । |
विवादों | • गांधी हत्या मामला (1948): गिरफ्तार हुए लेकिन सबूतों के अभाव में बरी हो गए । • दया याचिकाएँ (1911-1924): जेल से जल्दी रिहाई के लिए क्षमा याचिकाएँ लिखीं , इस पर बहस हुई कि यह रणनीतिपूर्ण या समझौतापूर्ण कदम था । • भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध (1942): गांधी के आह्वान को अस्वीकार कर दिया गया, सविनय अवज्ञा के बजाय सैन्य शक्ति को प्राथमिकता दी गई । • हिंदुत्व विचारधारा: आलोचकों का दावा है कि इसने धार्मिक विभाजन को बढ़ावा दिया , जबकि समर्थक इसे हिंदू पहचान को पुनर्जीवित करने के रूप में देखते हैं । |
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