सीखने के प्रतिफल (Learning Outcomes)
- ‘सीखने के प्रतिफल’दस्तावेज राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् (NCERT) द्वारा राज्य एवं जिला स्तर के हितधारकों के साथ मिलकर तैयार किया गया और शैक्षिक सत्र 2017-18 से कक्षा 1 से 8 तक (प्रारम्भिक स्तर) के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिनियम, 2009 (RTE-2009) के सरोकार को संबोधित करने के लिए इसे क्रियान्वित किया गया।
- प्रत्येक कक्षा के विद्यार्थी के सीखने के बारे में जानने और उसके अनुसार बच्चों के सीखने संबंधी प्रगति पर नजर बनाए रखने की जरूरत है। इसके लिए आवश्यकता है कि शिक्षकों को कुछ मानदण्ड उपलब्ध करवाए जाएँ, जिनकी सहायता से अपेक्षित सीखने के स्तर का आकलन किया जा सके।
- सीखने की निरन्तरता को ध्यान में रखते हुए शिक्षक एवं शिक्षा व्यवस्था से जुड़े सभी अधिकारियों एवं अभिभावकों को यह जानना आवश्यक है कि बच्चे ने सटीक रूप से कक्षा में क्या सीखा? इन्हीं मानदण्डों को ‘सीखने के प्रतिफल’ के रूप में परिभाषित किया गया है अर्थात् जो कुछ बच्चे ने सीखा है उसको जाँचने अथवा उस परिणाम को देखने के मापदण्ड को अधिगम प्रतिफल के रूप में देखा जा सकता है।
- यह दस्तावेज शिक्षकों, शिक्षक-प्रशिक्षकों एवं शैक्षिक प्रशासकों के साथ-साथ माता-पिता के लिए है।
- सीखने के प्रतिफल न केवल प्रत्येक कक्षा के शिक्षकों को सीखने-सिखाने पर ध्यान केंद्रित करने में सहायता करेगा बल्कि ये अभिभावक/संरक्षक, समुदाय के सदस्यों और राज्य पदाधिकारियों को पूरे देश के विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने में उनकी भूमिका-निर्वाह करने में सहायक होंगे।
- यह दस्तावेज दो प्रारूपों में निर्मित किया गया है- एक, ‘सम्पूर्ण दस्तावेज’ जिसमें पाठ्यक्रम संबंधी अपेक्षाओं, सीखने-सिखाने की प्रक्रिया और कक्षा 1 से 8 के लिए सीखने के प्रतिफलों को सम्मिलित किया गया है। दूसरा, संक्षिप्त संस्करण जिसमें प्रत्येक कक्षा के लिए प्रत्येक विषय के केवल सीखने के प्रतिफल हैं।
- बच्चे कई तरीकों से सीखते हैं, जैसे- सुनकर, पढ़कर, खेलकर, बातचीत से और कार्य करते हुए। इस तरह सीखने से उनके व्यवहार में परिवर्तन आते हैं। ये परिवर्तन जब महसूस किए जाते हैं और आकलित किए जाते हैं तो ये सीखने के प्रतिफल कहलाते हैं।
- सीखने के प्रतिफल का मुख्य उद्देश्य विद्यालयों में सीखने की गुणवत्ता को बढ़ाना व शिक्षकों को इस योग्य बनाना है ताकि शिक्षक बिना विलंब सभी विद्यार्थियों के लिए सीखने के कौशलों को अधिक उपयुक्त रूप से सुनिश्चित करे और सुधारात्मक कदम उठाए।
- प्रारम्भिक स्तर पर ‘सीखने के प्रतिफल’ की निरंतरता में ही राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद् (NCERT) द्वारा, 2019 में ‘माध्यमिक स्तर पर सीखने के प्रतिफल’ नामक दस्तावेज विकसित किया गया। इसमें वे दक्षताएँ सम्मिलित हैं, जो शिक्षार्थियों में हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू, संस्कृत, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, गणित, स्वास्थ्य और शारीरिक शिक्षा और कला शिक्षा विषयों में कक्षा 9 से 10 में विकसित की जानी चाहिए। इसमें विस्तृत शैक्षणिक प्रक्रियाओं को भी सम्मिलित किया गया है, जिन्हें अपेक्षित दक्षताओं को विकसित करने के लिए अपनाया जा सकता है।
Note :-
(i) प्रारम्भिक स्तर पर सीखने के प्रतिफल (2017-18)
(ii) माध्यमिक स्तर पर सीखने के प्रतिफल (2019)
सीखने के प्रतिफलों पर आधारित राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (NAS) अब सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों में सभी कक्षाओं में किया जाएगा।
सीखने के प्रतिफल के उद्देश्य
● नि:शुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार-2009 (RTE-2009) की क्रियान्विति के अंतर्गत बच्चों की सीखने की गुणवत्ता को बढ़ाना।
● शिक्षकों को इस योग्य बनाना है ताकि शिक्षक बिना विलम्ब सभी विद्यार्थियों के लिए सीखने के कौशलों को अधिक उपयुक्त रूप से सुनिश्चित करे एवं सुधारात्मक कदम उठाए।
● बालकों के सीखने एवं निरंतर प्रगति स्तर को जाँचने के लिए मानदण्ड तय करना।
● विषय की प्रकृति, विशेषताओं, शिक्षाशास्त्र एवं सीखने के प्रतिफल को समन्वित रूप से समझना।
● विद्यार्थी के सीखने के संदर्भ में अभिभावकों को सजग एवं जागरूक बनाने हेतु उनकी उपलब्धि एवं प्रगति को शिक्षक द्वारा अभिभावकों से साझा करना।
● शिक्षण को विषय तक सीमित न रखकर विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास के प्रयास द्वारा जीवन कौशल विकसित करना।
सीखने के प्रतिफल की विशेषताएँ
● सीखने के प्रतिफल पर कार्य करना वर्तुलाकार (Spiral) प्रक्रिया है।
● वर्तुलाकार प्रक्रिया का आशय है कि अधिगम प्रक्रिया से मूल्यांकन तक पहुँचा जाए। इस प्रक्रिया को तब तक जारी रखा जाए जब तक कि ‘सीखने के प्रतिफल’ पूर्ण रूप से प्राप्त न हो जाएँ।
● ‘सीखने के प्रतिफल’ बाल केंद्रित हैं।
● कक्षावार सीखने के प्रतिफल, प्रक्रिया एवं क्षमता आधारित हैं। ये प्रतिफल एक प्रकार से जाँच बिन्दु (Check point) हैं और कक्षा में शिक्षार्थियों की प्रगति का आकलन करने के लिए गुणात्मक या मात्रात्मक रूप में मापे जाते हैं।
● साधारणत: ये न केवल विषय-वस्तु को सीखने के प्रतिफल हैं; बल्कि ये वे अपेक्षाएँ, दक्षताएँ और कौशल हैं, जिनसे विद्यार्थी अपने आपको एक अच्छे नागरिक के रूप में स्वयं तैयार कर समतावादी देश बनाने में योगदान कर सके।
● पाठ्यचर्या अपेक्षाओं के अनुसार सीखने के प्रतिफलों की उपलब्धि और समझ के लिए शिक्षकों की मदद हेतु प्रतिफलों के साथ-साथ सीखने-सिखाने की प्रक्रियाएँ सुझाई गई हैं।
● पाठ्यचर्या के प्रत्येक विषय के अंतर्गत विषय की प्रकृति पर संक्षिप्त टिप्पणी दी गई है। इसके बाद पाठ्यचर्या अपेक्षाएँ हैं, जो एक प्रकार से वे दीर्घकालिक लक्ष्य हैं जिन्हें विद्यार्थियों को एक समय-अंतराल में अर्जित करना है।
● प्रत्येक पाठ्यचर्या विषय में परिभाषित सीखने के प्रतिफल, पाठ्यचर्या विषयों की अंत: एवं आंतरिक जटिलताओं और अवस्थाओं के संदर्भ में आपस में वर्तुलाकार रूप से जुड़े हुए हैं।
● कक्षावार अनुभागों को अलग-अलग न देखा जाए। बच्चे के सम्पूर्ण विकास के लक्ष्य प्राप्ति में पूर्णतावादी परिप्रेक्ष्य मदद करेगा।
● ये प्रतिफल बच्चे के सम्पूर्ण विकास के लिए अपेक्षित है। ‘सम्पूर्ण सीखने’ के अनुसार बच्चों की प्रगति का आकलन करने में मदद करते हैं।
● सीखने-सिखाने की प्रक्रियाएँ प्रस्तावित हैं, ये प्रक्रियाएँ एक-एक प्रतिफल के साथ संयोजित नहीं हैं। इसका अर्थ यह है कि कोई एक प्रक्रिया सीखने के अनेक प्रतिफलों को प्राप्त करने में मदद कर सकती है और वही सीखने के एक प्रतिफल को प्राप्त करने के लिए करते हैं।
● सीखने-सिखाने की प्रक्रियाएँ प्रस्तावित हैं। ये प्रक्रियाएँ एक-एक प्रतिफल के साथ संयोजित नहीं हैं। इसका अर्थ यह है कि कोई एक प्रक्रिया सीखने के अनेक प्रतिफलों को प्राप्त करने में मदद कर सकती है और वहीं सीखने के एक प्रतिफल को प्राप्त करने के लिए एक से अधिक प्रक्रियाओं का प्रयोग किया जा सकता है। अत: इन्हें सम्पूर्णता में देखा जाना चाहिए।
● सीखने के प्रतिफलों को 21वीं सदी में आने वाली आगामी चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है जो कि शिक्षार्थियों से प्रतिस्पर्द्धा के युग में कार्य की समझ, कौशल एवं उनके प्रयोग की माँग करती है।
● आकलन सीखने-सिखाने की गतिविधियों का अभिन्न अंग है। यह विद्यार्थियों की उपलब्धि की प्रकृति और विस्तार बताता है, इसलिए सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में यह महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि आकलन को सीखने-सिखाने की प्रक्रिया के साथ समेकित किया जाए, ताकि सीखने-सिखाने के प्रमाणों को पहचाना जा सके। इस दस्तावेज में आकलन सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में अंतर्निहित है। जिस क्षमताओं का आकलन करना है, शिक्षक उसके अनुसार आकलन की योजना, रचना और संचालन कर सकते हैं।
● इस दस्तावेज में विशेष आवश्यकता वाले शिक्षार्थियों की आवश्यकताओं, अन्य अक्षमताओं वाले शिक्षार्थियों और कठिन परिस्थितियों में सीखने वाले शिक्षार्थियों की सीखने से संबंधित आवश्यकताओं को संबोधित करता है।
● यह मातृभाषा के महत्त्व को रेखांकित करता है और मातृभाषा के साथ-साथ क्षेत्रीय भाषाओं के उपयोग पर भी जोर देता है।
● यह सीखने के प्रतिफल दस्तावेज ‘सीखने के रूप में मूल्यांकन’ का उपयोग करके परीक्षा व्यवस्था में बदलाव लाने के लिए योगदान देगा।
सीखने के प्रतिफल :
विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए विचार किए जाने वाले बिन्दु-
● परीक्षाओं में सफलतापूर्वक भागीदारी के लिए अतिरिक्त समय तथा उपयुक्त संसाधन देना।
● पाठ्यचर्या में संशोधन, क्योंकि यह उनके लिए विशिष्ट कठिनाइयाँ पैदा करता है।
● विभिन्न विषय-वस्तु क्षेत्रों में अनुकूलित, संशोधित या वैकल्पिक गतिविधियों का प्रावधान करना।
● उनकी आयु एवं अधिगम स्तर के अनुरूप सुगम पाठ्यवस्तु व सामग्री उपलब्ध करवाना।
● समुचित कक्षा-कक्ष प्रबंधन (ध्वनि, प्रकाश, चमक, उपकरण इत्यादि)।
● घर की भाषा के लिए सम्मान और उनके सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश (परम्पराएँ और रीति-रिवाज इत्यादि) से संबंध स्थापित करना।
● सूचना एवं संचार तकनीकी (ICT), वीडियो अथवा डिजिटल प्रारूपों के प्रयोग से अतिरिक्त सहयोग का प्रावधान।
Note :- सीखने के प्रतिफल हमारे शैक्षिक नियोजन के वांछित उद्देश्यों को प्राप्त करने में क्षेत्रीय असमानताओं को दूर करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम हैं।
● राज्य इसे अपनी आवश्यकता एवं संदर्भों के अनुसार ज्यों का त्यों अपना सकते हैं या अपेक्षित बदलाव कर सकते हैं।
अत: ‘सीखने के प्रतिफल’ सीखने की गुणवत्ता सुधारने में शिक्षकों, माता-पिता, अभिभावकों तथा पूरी व्यवस्था-तंत्र के लिए उपयोगी सिद्ध होगा और विद्यालयी शिक्षा के प्रारम्भिक स्तर पर बच्चों के विकास में सहायक होगा।
विशिष्ट तथ्य
● NCERT द्वारा विकसित दस्तावेज ‘सीखने के प्रतिफल’ जिससे प्रारम्भिक स्तर के पाठ्यक्रम के विषयों, जैसे- पर्यावरण अध्ययन, विज्ञान, गणित, सामाजिक विज्ञान, हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू के सीखने के प्रतिफलों को सीखने-सिखाने की प्रक्रियाओं और पाठ्यचर्या की अपेक्षाओं से जोड़कर शामिल किया गया है।
● माध्यमिक स्तर पर पाठ्यचर्या के विषयों जैसे- हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू, विज्ञान, सामाजिक अध्ययन, गणित, कला शिक्षा और स्वास्थ्य एवं शारीरिक शिक्षा के प्रतिफलों को शामिल किया गया है।
