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वायकोम सत्याग्रह

वायकोम सत्याग्रह

 

सुर्ख़ियों में क्यों? 

इस वर्ष वायकोम सत्याग्रह की आधिकारिक तौर पर वापसी की शताब्दी (100वीं वर्षगांठ) मनाई जा रही है। वायकोम सत्याग्रह को 30 नवंबर, 1925 को वापस ले लिया गया था।

अन्य संबंधित तथ्य 

  • वायकोम सत्याग्रह भारत के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना थी, क्योंकि यह अस्पृश्यता के खिलाफ लड़ाई में मील का पत्थर साबित हुई थी।
  • गांधी और त्रावणकोर के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर डब्ल्यू. एच. पिट के बीच विचार-विमर्श के बाद सत्याग्रह को वापस ले लिया गया था।

वायकोम सत्याग्रह के बारे में

  • वायकोम सत्याग्रह केरल के त्रावणकोर में हिंदू जातिगत भेदभाव के खिलाफ एक अहिंसक नागरिक अधिकार आंदोलन था।
  • इस आंदोलन ने विशेष रूप से निम्न जातियों (अवर्णों) को वायकोम में शिव मंदिर के चारों ओर की सार्वजनिक सड़कों का उपयोग करने से रोकने वाले निषेध का विरोध किया था।
  • निषेधात्मक आदेशों के कारण किसी जुलूस की बजाय प्रतिदिन तीन स्वयंसेवकों को सड़क पर भेजकर सत्याग्रह की शुरुआत की गई।
    • खादी पहने तीन युवक गोविंदा पणिक्कर (नायर), बहुलेयन (एझवा) और कुंजप्पू (पुलया), मंदिर की ओर कूच करते हुए आगे बढ़े।
  • उन्हें तुरंत रोक दिया गया और गिरफ्तार कर लिया गया। इसलिए, अगली सुबह फिर तीन अन्य व्यक्ति निषिद्ध सड़कों पर आ गए और अपनी गिरफ्तारी दी।
    • यह क्रम प्रतिदिन चलता रहा जब तक कि पुलिस ने गिरफ्तारी करना बंद नहीं कर दिया और इसकी बजाय पूरे इलाके में नाकाबंदी कर दी।
  • इसके बाद, सत्याग्रहियों ने शांतिपूर्ण विरोध के तरीके अपनाए, जैसे-सड़कों को अवरुद्ध करना, शांत प्रदर्शन करना और सभाएं आयोजित करना।
  • मंदिर के पास अलग-अलग जातियों के स्वयंसेवकों को आश्रय देने के लिए सत्याग्रह आश्रम की स्थापना की गई, जिससे सामाजिक एकता को बल मिला। इस सत्याग्रह को पंजाब के अकालियों के साथ-साथ देश के विभिन्न हिस्सों के ईसाई और मुस्लिम नेताओं का भी व्यापक समर्थन मिला।
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प्रमुख नेतृत्व

  • मंदिर में प्रवेश का मुद्दा सबसे पहले एझवा नेता टी. के. माधवन ने 1917 में अपने अखबार देशाभिमानी के एक संपादकीय के माध्यम से उठाया था।
    • उनके प्रयासों के कारण जनवरी, 1924 में अस्पृश्यता विरोधी समिति (AUC) का गठन हुआ। इसमें के. पी. केशव मेनन और के. केलप्पन (जिन्हें केरल का गांधी कहा जाता है) जैसे अन्य जाति-विरोधी उग्र सुधारवादी भी शामिल थे। 
    • ये तीनों वायकोम सत्याग्रह आंदोलन के अग्रदूत माने जाते हैं।
  • केरल प्रांतीय कांग्रेस समिति ने अस्पृश्यता-विरोध को एक प्रमुख मुद्दे के रूप में अपनाने के लिए एक संकल्प अपनाया था। इस समिति की अध्यक्षता के. केलप्पन ने की थी। इसमें टी. के. माधवन, वेलायुध मेनन, के. नीलकांतन नंबूथिरी और टी. आर. कृष्णास्वामी अय्यर जैसे सदस्य शामिल थे।
  • जब आंदोलन के अग्रणी नेता जेल में थे, तब जॉर्ज जोसेफ ने कुछ समय के लिए आंदोलन का नेतृत्व किया था और उन्होंने पेरियार से सत्याग्रह का नेतृत्व करने का अनुरोध किया था।
  • ई. वी. रामासामी नायकर (पेरियार) ने सरकारी प्रतिबंधों की अवहेलना की, सार्वजनिक बैठकों को संबोधित किया और दो बार जेल गए। उन्होंने आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • ई. वी. रामासामी नायकर (पेरियार) को ‘वायकोम वीरार’ के नाम से भी जाना जाता है।
  • गांधी ने मार्च, 1925 में वायकोम का दौरा किया, सार्वजनिक बैठकें कीं, महारानी से भेंट की और नंबूदरी पुजारी से बहस की। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अस्पृश्यता के खिलाफ लड़ाई उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी कि स्वराज की लड़ाई।
  • वायकोम सत्याग्रह में महिलाओं ने भी बड़े पैमाने पर भागीदारी दिखाई थी। कई महिलाएं अग्रणी भूमिकाओं में रहीं: नागम्मई (पेरियार की पत्नी), एस. आर. कन्नम्मा और भाग्यम स्तानुमालय पेरुमल ने मंदिर के चारों ओर ‘प्रतिबंधित सड़क’ में प्रवेश करने के लिए बैरिकेड को हटाने का प्रयास किया था। इसके अलावा, कय्यालक्कल नारायणी (टी. के. माधवन की पत्नी) ने देशाभिमानी में लेख लिखकर आंदोलन को वैचारिक समर्थन दिया था।
  • अन्य प्रमुख व्यक्तित्व जिन्होंने सत्याग्रह का समर्थन किया: सी. राजगोपालाचारी, श्री नारायण गुरु, चट्टम्पी स्वामीकल आदि।

सत्याग्रहियों के समक्ष चुनौतियां

  • रूढ़िवादी प्रतिरोध: वायकोम सत्याग्रह में उच्च जाति के हिंदुओं और मंदिर प्राधिकारियों ने सत्याग्रहियों पर हिंसक हमले किए थे। उन्हें मारा-पीटा गया था और उनकी आँखों में जलनकारी पदार्थ डाले गए थे।
  • वित्त-पोषण और मनोबल संबंधी चुनौतियां: सत्याग्रहियों की लगातार गिरफ्तारियों और धन की कमी ने आंदोलन के स्थायित्व और आंदोलनकारियों के मनोबल की कड़ी परीक्षा ली थी।
  • आंतरिक मतभेद: सत्याग्रह के तरीकों को लेकर गांधी जी और श्री नारायण गुरु के बीच मतभेद उत्पन्न हो गया था। इससे आंदोलन में अस्थायी दरार पैदा हो गई थी।
  • बाढ़: आंदोलन के दौरान एक गंभीर बाढ़ आ गई थी, जिससे सत्याग्रहियों को कमर तक पानी में खड़ा रहना पड़ा था, जबकि पुलिस नावों में बैठकर पहरा दे रही थी।
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वायकोम सत्याग्रह का महत्त्व

  • आंशिक सफलता (नवंबर 1925): मंदिर की चार में से तीन सड़कों को सभी के लिए खोल दिया गया था, जिसमें एझावा और अस्पृश्य भी शामिल थे। मंदिर की चौथी सड़क को केवल ब्राह्मणों के लिए आरक्षित रखा गया था।
  • दीर्घकालिक प्रभाव: इस आंदोलन ने त्रावणकोर में 1936 के मंदिर प्रवेश अधिनियम का मार्ग प्रशस्त किया। इसके तहत सभी हिंदुओं को मंदिरों और उनके आस-पास के मार्गों तक पहुंच की अनुमति मिल गई।
  • राष्ट्रीय महत्त्व: इस आंदोलन ने पूरे भारत का ध्यान आकर्षित किया। डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने इसे अस्पृश्यों के लिए “सबसे महत्वपूर्ण घटना” कहा था, जिससे पूरे भारत में अस्पृश्यता के मुद्दे को लेकर व्यापक जागरूकता फैली।
  • सांप्रदायिक सद्भाव: इस आंदोलन ने सवर्णों, अवर्णों, ईसाइयों, मुसलमानों और सिखों के बीच एकता को बढ़ावा दिया था तथा लोगों की एकजुटता का उदाहरण प्रस्तुत किया था।
  • गांधीवादी सिद्धांत: इस आंदोलन ने सत्याग्रह की प्रभावशीलता को एक अहिंसात्मक सामाजिक सुधार के उपकरण के रूप में सिद्ध किया है।

निष्कर्ष

वायकोम सत्याग्रह भारत में अस्पृश्यता के खिलाफ लड़ाई में एक मील का पत्थर था, जिसने सामाजिक न्याय को स्वतंत्रता आंदोलन से और देशी रियासतों को राष्ट्रीय संग्राम से जोड़ा।

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