सिंधु जल संधि (INDUS WATERS TREATY: IWT)
सुर्ख़ियों में क्यों?
हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के साथ की गई 1960 की सिंधु जल संधि (IWT) को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया। इस फैसले पर तब तक कोई पुनर्विचार नहीं किया जाएगा, जब तक कि पाकिस्तान विश्वसनीय तौर पर सीमा-पार आतंकवाद को अपना समर्थन देना बंद नहीं कर देता।
अन्य संबंधित तथ्य
- ‘निलंबन’ शब्द अस्थायी निष्क्रियता या स्थगन की स्थिति को दर्शाता है। हालांकि, यह अंतर्राष्ट्रीय संधि कानून के तहत कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त अवधारणा नहीं है।
- न तो सिंधु जल संधि (IWT) और न ही वियना कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ ट्रीटीज (VLCT), 1969 किसी संधि के दायित्वों को रोकने या स्थगित करने के लिए ‘निलंबन’ को एक वैध आधार के रूप में स्वीकार करता है।
- वियना कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ ट्रीटीज (VCLT) संधियों से जुड़ा एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय समझौता है, जो राष्ट्रों के बीच होने वाली संधियों से जुड़े सिद्धांतों और प्रक्रियाओं को स्पष्ट करता है। यह उन प्रथागत अंतर्राष्ट्रीय कानूनों को विधिवत रूप देता है जो सरकारों के बीच समझौतों के गठन, व्याख्या और क्रियान्वयन को नियंत्रित करते हैं। इसलिए, इसे आमतौर पर “संधियों पर संधि (Treaty on Treaties)” के रूप में जाना जाता है।
- IWT में एकतरफा निलंबन की अनुमति देने वाला कोई प्रावधान नहीं है।
- IWT के अनुच्छेद XII(4) में कहा गया है कि यह संधि तब तक प्रभावी बनी रहेगी जब तक कि इसे किसी विधिवत अनुमोदित नई संधि के माध्यम से औपचारिक रूप से समाप्त नहीं कर दिया जाता।
सिंधु जल संधि (IWT) के बारे में
- उत्पत्ति: सिंधु जल संधि पर 1960 में भारत और पाकिस्तान ने हस्ताक्षर किए थे। इस संधि पर विश्व बैंक द्वारा मध्यस्थता की गई थी।
- उद्देश्य: सिंधु और उसकी सहायक नदियों के जल का भारत व पाकिस्तान के बीच वितरण सुनिश्चित करना।
- नदी जल के बंटवारे के प्रावधान:
- पूर्वी नदियां (रावी, ब्यास और सतलुज): भारत इन नदियों का समस्त जल बिना किसी रोक-टोक के उपयोग कर सकता है।
- पश्चिमी नदियां (सिंधु, झेलम और चिनाब): इन नदियों का जल पाकिस्तान को आवंटित किया गया है। हालांकि, भारत को विशिष्ट गैर-उपभोग उद्देश्य से कुछ सीमित गतिविधियों की अनुमति प्राप्त है, जैसे- नौवहन, बाढ़ सुरक्षा या बाढ़ नियंत्रण, घरेलू उपयोग, कृषि उपयोग, जल-विद्युत उत्पादन से संबंधित गतिविधियां, आदि।
- संधि के अनुच्छेद III(1) के अनुसार, “भारत पर यह दायित्व है कि वह पश्चिमी नदियों के जल के प्रवाह को पाकिस्तान में बहने देने के लिए बाध्य है।”
- डेटा का आदान-प्रदान: संधि के तहत जल प्रवाह और उपयोग के संबंध में दोनों पक्षों के बीच नियमित रूप से जानकारी का आदान-प्रदान किया जाता है।
- विवाद समाधान: IWT 3-चरणीय विवाद समाधान तंत्र प्रदान करता है, अर्थात्:
- चरण 1: स्थायी सिंधु आयोग (Permanent Indus Commission: PIC): यदि संधि की व्याख्या या इसके उल्लंघन से संबंधित कोई संदेह या विवाद हो, तो इसे हल करने की पहली जिम्मेदारी PIC (यानी सिंधु आयुक्तों) की होती है।
- संधि के संचालन से जुड़े संवाद के लिए दोनों देश से एक-एक आयुक्त के साथ एक PIC की नियुक्ति करने की आवश्यकता थी।
- PIC को नियमित रूप से वर्ष में कम-से-कम एक बार, बारी-बारी से भारत और पाकिस्तान में बैठक करना आवश्यक है।
- चरण 2: तटस्थ विशेषज्ञ (Neutral Expert): यदि PIC में किसी तकनीकी विवाद पर सहमति नहीं बन पाती है तब मामला तटस्थ विशेषज्ञ के पास भेजा जाता है। इसका निर्णय बाध्यकारी होता है।
- तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति विश्व बैंक द्वारा की जाती है।
- चरण 3: मध्यस्थता न्यायालय (Court of Arbitration: CoA): यदि कोई तटस्थ विशेषज्ञ विफल रहता है, तो विवाद CoA के पास जाता है। यह आम तौर पर सात सदस्यों वाला अस्थायी मध्यस्थता अधिकरण होता है, जो अपनी प्रक्रियाओं एवं निर्णयों का निर्धारण बहुमत से करता है।
- चरण 1: स्थायी सिंधु आयोग (Permanent Indus Commission: PIC): यदि संधि की व्याख्या या इसके उल्लंघन से संबंधित कोई संदेह या विवाद हो, तो इसे हल करने की पहली जिम्मेदारी PIC (यानी सिंधु आयुक्तों) की होती है।
सिंधु जल संधि के निलंबन के संभावित प्रभाव | |
भारत के लिए | पाकिस्तान के लिए |
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IWT से संबंधित अन्य मुद्दे
- भारतीय बांधों पर पाकिस्तान की आपत्तियां: किशनगंगा (झेलम) और रतले (चेनाब) बांधों पर पाकिस्तान ने आपत्ति जताई है।
- विवाद समाधान-तंत्र का पालन न करना: भारत की किशनगंगा जलविद्युत परियोजना पर पाकिस्तान ने तटस्थ विशेषज्ञ तंत्र को दरकिनार करते हुए सीधे हेग स्थित स्थायी मध्यस्थता न्यायालय (PCA) में मामले को ले गया था।
- यह संधि के विवाद समाधान तंत्र का उल्लंघन करता है, जिसमें तकनीकी मध्यस्थता से कानूनी मध्यस्थता तक की क्रमिक कार्यवाही अनिवार्य है।
- जैव विविधता पर प्रभाव: शाहपुरकंडी (रावी) और उझ (रावी) परियोजनाएं रावी के प्रवाह को बदल सकती हैं। इससे सिंधु नदी डॉल्फिन और उनका पर्यावास प्रभावित हो सकते हैं।
- जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में, 2021 में भारत की जल संसाधन संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने सिंधु नदी पर जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के बढ़ते प्रभावों को देखते हुए पाकिस्तान के साथ IWT पर पुनः चर्चा करने की सिफारिश की थी।
- राज्य-प्रायोजित आतंकवाद: 2016 में, कश्मीर में एक आतंकवादी हमले के बाद भारत ने चेतावनी दी थी कि “पानी और खून एक साथ नहीं बह सकते”।
- संधि में योजना के अनुसार नियमित डेटा साझाकरण नहीं: नदी बेसिन की गतिशीलता को समग्रता से समझने के लिए जल प्रवाह संबंधी डेटा साझाकरण महत्वपूर्ण रूप से आवश्यक है।
अंतर्राष्ट्रीय जल साझाकरण पर अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांत
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निष्कर्ष
भारत द्वारा ‘निलंबन’ शब्द का प्रयोग अपने अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों को अस्वीकार करने के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। बल्कि, यह एक रणनीतिक संकेत है कि संधियों को व्यावहारिक राजनीतिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए लचीला और प्रासंगिक बनाया जाना चाहिए। ये संधियां तभी टिकाऊ रह सकती हैं जब सभी पक्ष अपनी विश्वसनीयता बनाए रखें और भारत के राष्ट्रीय हितों को कोई क्षति न पहुंचे।
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