प्राइमेट इन पेरिल
चर्चा में क्यों?
प्राइमेट शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने प्राइमेट्स इन पेरिल: द वर्ल्ड्स 25 मोस्ट एन्डेंजर्ड प्राइमेट्स 2023-2025 नामक एक नई रिपोर्ट जारी की है।
जिसमें पूरे विश्व की 25 प्राइमेट प्रजातियों के समक्ष बढ़ते खतरों पर प्रकाश डाला गया है।
- इन 25 प्रजातियों में से 6 अफ्रीका से, 4 मेडागास्कर से, 9 एशिया से और 6 दक्षिण अमेरिका (नियोट्रॉपिक्स) से संबंधित हैं।
प्राइमेट क्या हैं?
- प्राइमेट स्तनधारियों का एक समूह है, जिसमें बंदर, वानर और मनुष्य शामिल हैं।
- वे दो मुख्य समूहों में विभाजित हैं:
- स्ट्रेप्सिरहिनेस (Strepsirrhines) (वेट नोज्ड प्राइमेट): लीमर, लोरिस और गैलागोस (जिन्हें बुश बेबी भी कहा जाता है)।
- हैप्लोरहिनेस (Haplorhines) (ड्राई नोज्ड प्राइमेट): टार्सियर, बंदर और वानर।
- प्राइमेट्स की मुख्य विशेषताएँ
- बड़ा मस्तिष्क: समस्या-समाधान और जटिल व्यवहार में मदद करता है।
- रंग दृष्टि: रंगों की गहन समझ और एक विस्तृत शृंखला को देखने की क्षमता विद्यमान होती है।
- लचीले कंधे एवं अन्य शारीरिक अंग: पेड़ों पर आसानी से चलने में सहायता प्रदान करते हैं।
- विपरीत अंगूठे (अधिकांश में): वस्तुओं को पकड़ने एवं संभालने में मदद करते हैं।
- सबसे छोटा प्राइमेट: मैडम बर्थे का माउस लेमुर (लगभग 30 ग्राम)।
- सबसे बड़ा प्राइमेट: पूर्वी गोरिल्ला (200 किलोग्राम से अधिक वजन हो सकता है)।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष
- इस रिपोर्ट में एशिया, अफ्रीका, मेडागास्कर और दक्षिण अमेरिका के 25 सबसे लुप्तप्राय प्राइमेट्स की पहचान की गई है।
- मुख्य लुप्तप्राय प्राइमेट्स
- क्रॉस रिवर गोरिल्ला [गोरिल्ला गोरिल्ला डाइहली (Gorilla Gorilla Diehli)]: कैमरून और नाइजीरिया में पाया जाता है।
- तपनुली ओरंगुटान [पोंगो तपनुलिएंसिस (Pongo Tapanuliensis)]: इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप पर पाया जाता है।
- लुप्तप्राय प्राइमेट्स का भौगोलिक वितरण
- अफ्रीका: 6 प्रजातियाँ
- मेडागास्कर: 4 प्रजातियाँ
- एशिया: 9 प्रजातियाँ
- दक्षिण अमेरिका (नियोट्रोपिक्स): 6 प्रजातियाँ
- पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश में पाए जाने वाले दो प्राइमेट, ‘फेयरे एप’ और ‘वेस्टर्न हूलॉक गिब्बन’ पर विचार किया गया, लेकिन उन्हें अंतिम सूची में शामिल नहीं किया गया।
- फेयरे लंगूर (ट्रेचीपिथेकस फेयरेई) [Phayre’s Langur (Trachypithecus Phayrei)]
- अवस्थिति: पूर्वी बांग्लादेश, पूर्वोत्तर भारत और पश्चिमी म्याँमार में पाया जाता है।
- संरक्षण स्थिति: 20 वर्षों से IUCN रेड लिस्ट में लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध है।
- प्रमुख खतरे: घटती आबादी (संदेह है कि तीन पीढ़ियों में 50%-80% तक की गिरावट आई है)।
- पश्चिमी हूलॉक गिब्बन (हूलॉक-हूलॉक) [Western Hoolock Gibbon (Hoolock-hoolock)]
- अवस्थिति: पूर्वी बांग्लादेश, पूर्वोत्तर भारत और पश्चिमी म्याँमार में पाया जाता है।
- संरक्षण स्थिति: IUCN रेड लिस्ट में लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध है।
- प्रमुख खतरे: अतिक्रमण, कृषि, बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं और वनोन्मूलन के कारण आवास का नुकसान।
अनुशंसाएँ
- संरक्षण कार्य योजना: वर्तमान आबादी आकार, आनुवंशिक संरचना और छोटी आबादी की व्यवहार्यता का आकलन करने की आवश्यकता है।
- आवास संपर्क: इसे संरक्षण उपायों के माध्यम से बढ़ाया जा सकता है।
- कानूनी ढाँचा, शिक्षा और जागरूकता: शिकार, व्यापार, आवास की हानि और विखंडन को कम करने के लिए कानूनों के कार्यान्वयन, पर्यावरण के बारे में जागरूकता तथा शिक्षा एवं राष्ट्रीय स्तर पर क्षमता की आवश्यकता होती है।
- स्थानांतरण: यह संरक्षण रणनीति नए आवासों में जानवरों की आबादी के अस्तित्व को सुनिश्चित करने में मदद करती है। यह दृष्टिकोण लुप्तप्राय प्राइमेट्स के लिए लाभदायक हो सकता है।
- इसी प्रकार, ‘रिवाइंडलिंग’ भी लुप्तप्राय प्राइमेट्स के लिए लाभकारी हो सकती है, क्योंकि यह जब्त किए गए जानवरों को उनके प्राकृतिक आवास में पुनः स्थापित करती है।
रिपोर्ट में चिह्नित प्रमुख प्राइमेट प्रजातियाँ कौन-सी हैं?
- सर्वाधिक संकटग्रस्त प्रजातियाँ: रिपोर्ट में क्रॉस रिवर गोरिल्ला और तापनुली ओरंगुटान को गंभीर रूप से संकटग्रस्त प्रजातियों के रूप में दर्शाया गया है।
- क्रॉस रिवर गोरिल्ला की संख्या कैमरून और नाइजीरिया में कम-से-कम 11 समूहों में बँटी हुई है, जबकि सर्वाधिक संकटग्रस्त ग्रेट एप, तपानुली ओरांगुटान की संख्या 800 से भी कम है।
- दोनों को अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) द्वारा गंभीर रूप से संकटग्रस्त की सूची में रखा गया है।
- भारत की प्राइमेट प्रजातियाँ: फेयर लंगूर और वेस्टर्न हूलॉक गिबन, जो पूर्वोत्तर भारत तथा बांग्लादेश में पाए जाते हैं, को इस रिपोर्ट में उनके सामने आने वाले खतरों के आधार पर मूल्यांकित किया गया था, लेकिन अंततः इन्हें अंतिम सूची में शामिल नहीं किया गया।
- फेयर लंगूर: यह प्राइमेट अपनी विशिष्ट ‘चश्मेदार’ (Spectacled) रूप-रंग के लिये जाना जाता है। यह मुख्य रूप से पूर्वी बांग्लादेश और भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्रों विशेषकर असम, मिज़ोरम एवं त्रिपुरा में पाया जाता है।
- व्यवहार: वे वृक्षवासी (मुख्यतः वृक्षों पर रहते हैं), दिनचर (दिन में सक्रिय) तथा पर्णाहारी (मुख्यतः पत्तियों को भोजन के रूप में ग्रहण करने वाले) होते हैं व नई आई पत्तियों को विशेष प्राथमिकता देते हैं।
- संरक्षण स्थिति: इसे वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची के अंतर्गत सूचीबद्ध किया गया है और IUCN रेड लिस्ट में लुप्तप्राय के रूप में भी सूचीबद्ध किया गया है।
- यह त्रिपुरा में तीन संरक्षित क्षेत्रों अर्थात् सिपाहीजाला, तृष्णा और गुमटी वन्यजीव अभयारण्यों में पाया जाता है।
- आवास स्थान: यह सदाबहार या अर्द्ध-सदाबहार वनों, मिश्रित नम पर्णपाती वनों, साथ ही बाँस-समृद्ध क्षेत्रों, हल्के वुडलैंड्स और चाय बागानों के पास के क्षेत्रों को पसंद करता है।
- फेयर लंगूर: यह प्राइमेट अपनी विशिष्ट ‘चश्मेदार’ (Spectacled) रूप-रंग के लिये जाना जाता है। यह मुख्य रूप से पूर्वी बांग्लादेश और भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्रों विशेषकर असम, मिज़ोरम एवं त्रिपुरा में पाया जाता है।
- पश्चिमी हूलॉक गिब्बन ( हूलॉक हूलॉक ): यह भारत, बांग्लादेश और म्याँमार के उष्णकटिबंधीय वनों में पाया जाने वाला एक पूँछ रहित वानर है, जिसमें काले नर की आँखों के ऊपर एक सफेद पट्टी होती है जबकि मादा की आँखे हल्के रंग (बेज, भूरा, ग्रे) की होती है।
- ये प्रजाति अपनी ऊँची, सुरीली युगल आवाज़ (द्वैत स्वर) के लिये विख्यात है, जिसका प्रयोग नर-मादा जोड़े द्वारा अपने क्षेत्र को चिह्नित करने हेतु किया जाता है। दोनों लिंगों में स्वर प्रतिरूप (vocal patterns) समान होते हैं।
- व्यवहार: गिब्बन वृक्षीय प्राणी हैं और छलाँग लगाकर तथा झूलकर छतरी के ऊपर विचरण करते हैं तथा इनका सर्वाहारी आहार पौधे, अकशेरुकी तथा पक्षियों के अंडे होते हैं।
- वे एकल परिवार समूह में रहते हैं, एक ही संतान को जन्म देते हैं जो लगभग दो वर्षों तक माँ के साथ रहती है।
- आवास स्थान: वे नम पर्णपाती, सदाबहार, उपोष्णकटिबंधीय और निचले जंगलों में पनपते हैं, जिनका विस्तार पूर्वोत्तर भारत, बांग्लादेश और पश्चिमी/उत्तरी म्याँमार तक फैला हुआ है।
- संरक्षण स्थिति: इसे वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के अंतर्गत सूचीबद्ध किया गया है और IUCN रेड सूची में इसे लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- भारत की एकमात्र वानर प्रजाति, पश्चिमी हूलॉक गिब्बन, असम के जोरहाट ज़िले में स्थित हूलोंगापार गिब्बन अभयारण्य में पाई जाती है।
भारत में पाई जाने वाली अन्य प्रमुख प्राइमेट प्रजातियाँ कौन-सी हैं?
- लोरिस:
- ग्रे स्लेंडर लोरिस (लोरिस लिडेकेरियानस): पतली, रात्रिचर प्राइमेट प्रजाति जिसमें एक सूक्ष्म मेरुदंडीय धारी होती है।
- दो उप-प्रजातियाँ: मैसूर (बड़ी, धूसर) और मालाबार (लाल-भूरी, गोल आँखों के धब्बे)।
- पश्चिमी और पूर्वी घाटों में पाई जाती है।
- बंगाल स्लो लोरिस (नाइक्टिसेबस बेंगालेंसिस): इसमें पूँछ नहीं होती है और इसकी आँखें बड़ी होती हैं।
- इसके बालों का रंग राख-धूसर से लेकर पीले-भूरे तक हो सकता है।
- यह भारत के पूर्वोत्तर भाग में, विशेष रूप से ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिण में पाया जाता है।
- ग्रे स्लेंडर लोरिस (लोरिस लिडेकेरियानस): पतली, रात्रिचर प्राइमेट प्रजाति जिसमें एक सूक्ष्म मेरुदंडीय धारी होती है।
- लंगूर:
- जी का गोल्डन लंगूर (ट्रेचीपिथेकस जीई): मौसमी फर का रंग क्रीम/ऑफ-व्हाइट से बदलकर सुनहरा-नारंगी हो जाता है।
- काले चेहरे, हथेलियों और तलवों के साथ इसकी पहचान सुनहरे रंग की मूँछों से होती है।
- असम में मानस और संकोश नदियों के बीच पाया जाता है।
- नीलगिरी लंगूर (सेमनोपिथेकस जॉनी): इसके शरीर पर चमकदार काले रंग का कोट होता है, जिसमें पीले रंग के बालों की धारियाँ होती हैं।
- कोडागु से कन्याकुमारी पहाड़ियों तक पश्चिमी घाट में रहते हैं।
- कैप्ड लंगूर (ट्रेचीपिथेकस पाइलेटस): इसके सिर पर विशेष रंगीन “कैप” और लंबी पूँछ होती है।
- यह असम, मेघालय, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा में पाए जाते हैं।
- जी का गोल्डन लंगूर (ट्रेचीपिथेकस जीई): मौसमी फर का रंग क्रीम/ऑफ-व्हाइट से बदलकर सुनहरा-नारंगी हो जाता है।
- मकाक:
- सिंहपूँछ मकाक (मकाका सिलेनस): गहन, चमकदार रंग का शरीर; मुख के चारों ओर लंबा धूसर अयाल (गुच्छेदार रेखा) तथा पूँछ के सिरे पर गुच्छेदार बाल।
- यह कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के पश्चिमी घाट के वनों का स्वदेशी प्राणी है।
- बॉनेट मकाक (मकाका रेडिएटा): सर पर बालों की विशिष्ट घुमावदार “कैप” जैसा निशान होता है, जिससे इसे पहचाना जाता है।
- लंबी पूँछ, शरीर से भी लंबी, जो दक्षिण भारत में पाई जाती है।
- स्टंप-टेल्ड मैकाक (मकाका आर्कटोइड्स): भारत का सबसे बड़ा मैकाक, छोटी पूँछ, दाढ़ी जैसी बनावट वाला लाल-गुलाबी चेहरा।
- सिंहपूँछ मकाक (मकाका सिलेनस): गहन, चमकदार रंग का शरीर; मुख के चारों ओर लंबा धूसर अयाल (गुच्छेदार रेखा) तथा पूँछ के सिरे पर गुच्छेदार बाल।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन, किसी वृक्ष या लकड़ी के लट्ठे में बने छिद्र में से कीटों को खुरचने के लिये लकड़ी का औजार बनाता है? (2023) (a) मत्स्यन मार्जार (फिशिंग कैट) उत्तर: (b) |
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